समावेशी, न्यायसंगत तथा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रत्येक बच्चे का अधिकार: उपराष्ट्रपति नायडु

उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडु ने कहा कि समावेशी, न्यायसंगत और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रत्येक बच्चे का अधिकार है। उन्होंने निजी स्कूलों से वंचित वर्गों के और जरूरतमंद बच्चों की मदद के लिए नीतियां बनाने की अपील की। उन्होंने कहा कि जरूरतमंदों और निर्बल लोगों की सहायता के लिए हाथ बढ़ाने को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

नायडु ने बेंगलुरु के ग्रीनवुड हाई इंटरनेशनल स्कूल में कला, नाटक और संगीत के लिए एक समर्पित ब्लॉक: अत्याधुनिक इंडोर स्पोर्ट्स एरिना और एल’एटेलियर का उद्घाटन करने के बाद एक सभा को संबोधित करते हुए, कम उम्र में सेवा, भावना को विकसित करने की आवश्यकता पर बल दिया।

उपराष्ट्रपति ने कहा, “स्कूलों को अपने पाठ्यक्रम में सामुदायिक सेवा को शामिल करना चाहिए ताकि बच्चों में कम उम्र में ही समाज को वापस देने का दृष्टिकोण विकसित हो।”

उपराष्ट्रपति ने शिक्षण संस्थानों से अध्ययन, खेल, सह-पाठ्यक्रम और मनोविनोद गतिविधियों को समान महत्व देने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि इस तरह के दृष्टिकोण से छात्रों का सर्वांगीण विकास होगा और उन्हें आत्मविश्वासी बनाया जाएगा।

उन्होंने यह इच्छा जताई कि शिक्षण संस्थान छात्रों को बागवानी, वृक्षारोपण और जल संरक्षण जैसी गतिविधियों से जोड़ें। उन्होंने कहा कि यह बच्चों को प्रकृति के करीब लाएगा। उन्होंने 3आर- रिड्यूस, रीयूज और रीसायकल पर जोर देते हुए जल संरक्षण की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।

यह रेखांकित करते हुए कि एनईपी-2020 पाठ्येत्तर गतिविधियों पर बल देता है, नायडु ने सभी राज्यों से खेल, सह-पाठ्यक्रम गतिविधियों को प्राथमिकता देने और छात्रों के बीच नैतिक मूल्यों को विकसित करने का आग्रह किया।

उपराष्ट्रपति ने मूल्यों के ह्रास पर चिंता व्यक्त करते हुए छात्रों से हमारे सभ्यतागत मूल्यों को आत्मसात करने और भारत की गौरवशाली सांस्कृतिक विरासत की रक्षा करने का प्रयास करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा, “हमें मूल्यों को बहाल करना चाहिए, विरासत को संरक्षित करना चाहिए, अपनी संस्कृति को बढ़ावा देना चाहिए और भारतीय होने पर गर्व महसूस करना चाहिए।”

यह कहते हुए कि एक समय में भारत को ‘विश्व गुरु’ के रूप में जाना जाता था, श्री नायडु ने कहा कि लंबे समय तक औपनिवेशिक शासन के कारण हमने अपने गौरवशाली अतीत को भुला दिया है। उन्होंने कहा, “भारत आज आगे बढ़ रहा है और यह अपनी जड़ों की ओर वापस जाने का समय है।”

मातृभाषा को बढ़ावा देने और प्रसारित की अपनी अपील को दोहराते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा कि कोई व्यक्ति जितनी चाहे उतनी भाषाएं सीख सकता है लेकिन हमेशा मातृभाषा सीखने को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

हमारे दैनिक जीवन में शारीरिक फिटनेस के महत्व पर प्रकाश डालते हुए, श्री नायडु ने इच्छा जताई कि फिट इंडिया आंदोलन हर स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, पंचायत और गांव तक पहुंचे।

नायडु ने कला को अनंत बताते हुए कहा कि कला हमारी कल्पना को आकार देती है और एक ऐसी सार्वभौमिक भाषा बोलती है जिसकी कोई सीमा नहीं होती। नायडु ने भारत के अनूठे और विविध नृत्य रूपों को संदर्भित करते हुए कहा कि भरतनाट्यम, कथकली और कुचिपुड़ी का उल्लेख कई प्राचीन कला रूपों में किया गया है जो पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ते रहे हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि, “भारत की कला, संगीत और नाटक दुनिया को इसके सबसे बड़े उपहार हैं और यह हम में से प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है कि हम अपने समृद्ध और विविध कला रूपों की रक्षा करें और उसका प्रचार करें।”