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Jammu Kashmir: कभी सत्ता की धुरी माने जाने वाली कांग्रेस आज अपने अस्तित्व के लिए जूझ क्यों रही है

जम्मू कश्मीर में राजनीतिक हालात तेजी से बदल रही है। कभी सत्ता की धुर के रूप में जानें जानी वाली कांग्रेस आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हैं। उसे चुनौती केवल विपक्षी पार्टियों से ही नहीं मिल रही है, बल्कि अंदुरुनी मतभेद भी कांग्रेस के नाकामयाब होने की बड़ी वजह है। प्रदेश में बदले हालात और पार्टी में गुटबाजी और अंतर्कलह उसकी दुश्मन बन चुकी है। कुछ नेताओं के बगावती सुर और जनता से न जुड़ने के लिए रणनीति का अभाव इसकी परेशानी और बढ़ा रहे हैं।

कांग्रेस के बड़े नेता और पूर्व राज्य सभा सांसद ग़ुलाम नबी आज़ाद और उनके गुट के साथियों ने कांग्रेस के लिए मुश्किलें बढ़ा दी है।

अब नेकां-पीडीपी की जूनियर बन गई कांग्रेस: जम्मू कश्मीर के पुनर्गठन के बाद कांग्रेस की नीति ने उसे नेकां और पीडीपी की सहयोगी पार्टी बनाकर छोड़ दिया। उसके कई नेता दबे मुंह इस बात को स्वीकारते हैं। शायद यही वजह है कि जिला विकास परिषद (डीडीसी) चुनाव में कांग्रेस प्रदेश के 20 जिलों में एक भी जिले में अपना चेयरमैन नहीं बना पाई है। अनंतनाग और बारामुला नगर परिषद पर कांग्रेस काबिज थी, लेकिन बीते छह माह के दौरान दोनों नगर परिषद के चेयरमैन कांग्रेस छोड़ समर्थकों संग अपनी पार्टी का हिस्सा बन चुके हैं। ऐसे में वह न कश्मीर में पकड़ बना पाई और जम्मू भी खो दिया। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष लोकसभा चुनाव हारे ही, उनका पुत्र डीडीसी चुनावों में अपने ही घर में हार गया।

एक-एक कर सभी हो रहे हैं किनारे

कांग्रेस पर हमेशा से अपने नेताओं को नजरअंदाज करने का आरोप लगता आया है। 2009 में पीरजादा मोहम्मद सईद और फिर 2015 में गुलाम अहमद (जीए) मीर के प्रदेश कांग्रेस प्रमुख बनने के साथ यह टकराव और बढ़ गया।उनके अलावा भी कई कांग्रेस के नेताओं ने बगावत का झंडा बुलंद किया। इन नेताओं क कांग्रेस पार्टी से दरकिनार होना कांग्रेस पार्टी के लिए चिंता का भी विषय है और चुनौती भी।