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“जीते जी रक्तदान, मरने के बाद अंग दान: यह हमारे जीवन का आदर्श वाक्य होना चाहिए”: डॉ. मांडविया

केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया ने 12वें भारतीय अंगदान दिवस समारोह को संबोधित किया। उन्होंने कहा, “जीते जी रक्तदान, मरने के बाद अंगदान: यह हमारे जीवन का आदर्श वाक्य होना चाहिए।”

इस समारोह का आयोजन मृतक दाताओं के प्रत्यारोपण प्राप्तकर्ताओं को दिए गए जीवन के उपहार का उत्सव मनाने के लिए किया गया। केंद्रीय मंत्रियों ने इसका उद्घाटन अंग दान को बढ़ावा देने के लिए उस समय किया, जब देश में अंग दान की तुलना में अंग प्रतिस्थापन की मांग अधिक है। इस अवसर पर शोक की घड़ी में अपनी सहमति देने वाले मृतक दाताओं के परिवारों के सदस्यों को सम्मानित किया गया।

डॉ. मांडविया ने अपने संबोधन में अंग दान के महत्व को समझाया। उन्होंने कहा, “हमारी संस्कृति ‘शुभ’ और ‘लाभ’ पर जोर देती है, जहां व्यक्तिगत कल्याण समुदाय की अधिक बेहतरी के साथ निहित है। 12वें भारतीय अंग दान दिवस में हिस्सा लेना मेरे लिए सम्मान की बात है, यह दिन अंग दान के महान कार्य के लिए मनाया जाता है। साल 2010 से मृतक दाताओं और उनके परिवारों के सामाजिक योगदान को याद करने के लिए हर वर्ष भारतीय अंग दान दिवस मनाया जाता है।

उन्होंने गुजरात स्थित जामनगर के ‘दीपक’ नाम के एक ज्ञात अंग दाता से संबंधित अपने अनुभव को बताया, जिसके पिता ने अंग दान के लिए अपनी सहमति दी। उन्होंने सभी लोगों से न केवल अपने अंग को दान करने का संकल्प लेने का आह्वान किया, बल्कि देश में प्रत्यारोपण के लिए उपलब्ध अंगों की कमी का भी उल्लेख करने के साथ दूसरों को आगे आने के लिए प्रेरित किया।

डॉ. मांडविया ने विभिन्न पक्षों के बीच अधिक समन्वय स्थापित करने का आह्वाहन किया। उन्होंने कहा कि संपूर्ण समाज, डॉक्टरों, जागरूक नागरिकों, सरकारों और यहां तक कि मीडिया को अंग दान को लेकर झिझक को दूर करने व पूरे देश में अंग दान बढ़ावा देने के लिए सक्रिय रूप से अपनी भूमिका निभाने की जरूरत है।

राज्य स्तर पर एसओटीटीओ, क्षेत्रीय स्तर पर आरओटीटीओ और राष्ट्रीय स्तर पर एनओटीटीओ (राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन) के जरिए अंग दान, संग्रहण और प्रतिस्थापन के नेटवर्क की उपलब्धियों पर मंत्री ने कहा, “मुझे इस बात को साझा करते हुए बहुत गर्व हो रहा है कि देश में हर साल किए गए अंग प्रत्यारोपण की कुल संख्या वर्ष 2013 में 4,990 से बढ़कर 2019 में 12,746 हो गई है और ग्लोबल ऑब्जर्वेटरी ऑन डोनेशन एंड ट्रांसप्लांटेशन (डीओडीटी) की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार अब पूरे विश्व में भारत अंग दान के मामले में अमेरिका और चीन के बाद तीसरे पायदान पर है। इस तरह देखें तो 2012-13 की तुलना में अंग दान की दर में करीब चार गुना की बढ़ोतरी हुई है।

हालांकि, हम अभी भी प्रत्यारोपण की जरूरत वाले रोगियों की संख्या और मृत्यु के बाद अंग दान करने के लिए सहमति देने वाले लोगों की संख्या के बीच एक भारी अंतर का सामना कर रहे हैं। इसके अलावा, कोविड-19 महामारी के कारण अंग दान और प्रत्यारोपण गतिविधियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है, जिसे जल्द ही हम पीछे छोड़ने की उम्मीद करते हैं।”

उन्होंने समारोह में उपस्थित लोगों को यह भी याद दिलाया कि समाज तेजी से बदल रहा है और हर एक जीवन की शुचिता व अति उत्कृष्टता सभी को दिख रही है, जल्द ही अंग दान करने वालों को उसी सम्मान की नजर के साथ देखा जाएगा, जिस नजर से अपनी अर्जित सपंत्ति को दान देने वालों को देखा जाता है।