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कन्हैया कुमार सीपीआई की डूबती नैया को बीच मंझधार में छोड़, ख्याति बटोरते चले गए

वामदलों में सीपीआईएम के केरल शासन को छोड़ दें तो बाकी बची-खूची लेफ़्ट पार्टियां अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रही है. अगर हम इन सब में बात भारत की कम्युनिस्ट पार्टी यानि सीपीआई की करें तो यह बीजेपी के उंचे पहाड़ से टकाराकर चकनाचूर हो चुकी है. कन्हैया कुमार अपनी पार्टी की डूबती नैया को बीच मँझधार में छोड़ व्यक्तिगत ख्याति बटोरने में सफल रहे है’

जब भारत की कम्युनिस्ट पार्टी की नैया डूब रही थी, तो इनकी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने भरोसा जताकर कन्हैया कुमार को पतवार सौंपी थी, लेकिन इन्होंने अपनी पार्टी की डूबती नैया को बीच मँझधार में छोड़ व्यक्तिगत ख्याति बटोरते चले गए.

जब एक ओर कन्हैया कुमार जोरदार भाषणों के माध्यम से नरेंद्र मोदी पर हमला बोल रहे थे. तो दूसरी तरफ़ पार्टी की ज़मीन खिसकती जा रही थी. अगर मोटे तौर पर कहें तो इनके शानदार भाषणों से कांग्रेस और बाकि पार्टीयों को फायदा पहुंचता है.

इनको मास लीडर के रुप में देखा जाता है, लोकिन इनको अपनी सभाओं में कभी भी खुले मन से लेफ्ट का प्रमोशन करते हुए नही देखा गया है. शायद इसकी बड़ी वजह यह है कि ये जेएनयू से बाहर तो निकल गएं हो, मगर जेएनयू अभी भी इनके दिल से बाहर नहीं निकला है.

अगर कन्हैया कुमार सच में मद्धम हुए सूरज को लाल होते हुए देखना चाहते है तो इन्हें परिपक्वता भरी राजनीति करनी होगी, जबकि एक नई ऊर्जा के साथ मैदान में आना होगा और कार्यकर्ताओं को भी साथ लेकर चलना होगा। सिर्फ़ भाषण बाज़ी करने से पार्टियां नही बनती, ज़मीन तैयार करने के लिए आंदोलन खड़ा करना होता है. और यह कम्युनिस्टों का इतिहास रहा है .लेकिन कभी आंदोलन के दम पर खड़ी कम्युनिस्ट अपनी इतिहास भूलती जा जा रही है.

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