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वस्त्र मंत्रालय ने 160 करोड़ रुपये के कुल परिव्यय के साथ व्यापक हस्तशिल्प क्लस्टर विकास योजना को जारी रखने की मंजूरी दी

वस्त्र मंत्रालय ने 160 करोड़ रुपये के कुल परिव्यय के साथ व्यापक हस्तशिल्प क्लस्टर विकास योजना (सीएचसीडीएस) को जारी रखने की मंजूरी दी है। यह योजना मार्च, 2026 तक जारी रहेगी। इस योजना के तहत हस्तशिल्प कारीगरों को बुनियादी ढांचागत सहायता, बाजार तक पहुंच, डिजाइन और प्रौद्योगिकी उन्नयन से जुड़ी सहायता आदि प्रदान की जाएगी।

सीएचसीडीएस का उद्देश्य विश्वस्तरीय बुनियादी ढांचा तैयार करना है, जो उत्पादन और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए स्थानीय कारीगरों व लघु एवं मध्यम उद्यमों (एसएमई) की व्यावसायिक जरूरतों को पूरा करता हो। संक्षेप में, इन समूहों को स्थापित करने का मुख्य उद्देश्य कारीगरों और उद्यमियों को आधुनिक बुनियादी ढांचे, नवीनतम प्रौद्योगिकी व पर्याप्त प्रशिक्षण और मानव संसाधन विकास इनपुट, मार्केट लिंकेज और उत्पादन संबंधी विविधीकरण के साथ जुड़ाव युक्त विश्वस्तरीय इकाइयां स्थापित करने में सहायता करना है।

सीएचसीडीएस के तहत बेसलाइन सर्वे और गतिविधियों का लेखा-जोखा, कौशल प्रशिक्षण, उन्नत टूल किट, मार्केटिंग इवेंट, सेमिनार, प्रचार, डिजाइन कार्यशाला, क्षमता निर्माण आदि जैसे सॉफ्ट इंटरवेंशन प्रदान किए जाएंगे। इसके अलावा कामन सर्विस सेंटर, एम्पोरियम, कच्चे माल को रखने के लिए जगह, ट्रेड फैसिलिटेशन सेंटर, सामान्य उत्पादन केंद्र, डिजाइन और संसाधन केंद्र जैसे हार्ड इंटरवेंशन भी प्रदान किए जाएंगे।

एकीकृत परियोजनाओं का विकास उन केंद्रीय/राज्य हस्तशिल्प निगमों/स्वायत्त, निकाय-परिषद-संस्थान/पंजीकृत सहकारी समितियों/शिल्पकारों की उत्पादन कंपनी/पंजीकृत एसपीवी के माध्यम से किया जाएगा, जिनके पास आवश्यकतानुसार हस्तशिल्प क्षेत्र में अच्छा अनुभव है और जिन्होंने इसके उद्देश्य के अनुरूप डीपीआर (विस्तृत परियोजना रिपोर्ट) तैयार की हो।

लागत में कमी सुनिश्चित करने के लिए अलग-अलग जगहों के कारीगरों के बीच समन्वय करने, उनके जमीनी स्तर के उद्योग बनाने और उन्हें हस्तशिल्प क्षेत्र के लघु एवं मध्यम उद्यमों (एसएमई) से जोड़ने पर ध्यान दिया जाएगा। इस योजना के तहत समग्र विकास के लिए 10,000 से अधिक कारीगरों वाले बड़े हस्तशिल्प समूहों का चयन किया जाएगा।

अर्थव्यवस्था की बेहतरी सुनिश्चित करने के लिए अलग-अलग जगह पर फैले कारीगरों को एकजुट करने, जमीनी स्तर पर उनके उद्यमों का निर्माण करने और इन कारीगरों को हस्तशिल्प क्षेत्र के लघु एवं मध्यम उद्यमों (एसएमई) से जोड़ने पर ध्यान दिया जाएगा