भारत के इस्पात क्षेत्र में निम्न कार्बन आधारित बदलाव के संबंध में विचार-विमर्श हेतु इस्पात पर राष्ट्रीय लीडआईटी कार्यशाला आयोजित की गई
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने इस्पात मंत्रालय के साथ मिलकर 18 अक्टूबर 2023 को नई दिल्ली में भारत के इस्पात क्षेत्र में निम्न-कार्बन आधारित विकास से संबंधित नेशनल लीडरशिप ग्रुप फॉर इंडस्ट्री ट्रांजिशन (लीडआईटी) कार्यशाला का आयोजन किया। इस कार्यशाला का विषय “निम्न कार्बन की दिशा में बदलाव से उद्योग के सामने आने वाली चुनौतियों को समझना और समाधानों की सुविधा प्रदान करने में लीडआईटी की भूमिका” था। इस कार्यक्रम के आयोजन में यूएनडीपी और इन्वेस्ट इंडिया ने सहयोग दिया।
इस कार्यशाला ने विभिन्न हितधारकों को भारत के इस्पात क्षेत्र में निम्न कार्बन की दिशा में बदलाव के लिए नवीन समाधानों पर विचार-विमर्श करने हेतु एक मंच प्रदान किया जो जलवायु कार्रवाई के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को और मजबूत करेगा। इस कार्यशाला में भारत की बड़ी इस्पात कंपनियों, इस्पात संघों, अखिल भारतीय इंडक्शन फर्नेस एसोसिएशन, वित्तीय संस्थानों, बहुपक्षीय विकास बैंकों सहित विभिन्न हितधारकों ने भाग लिया। इस कार्यशाला में स्वीडन सरकार के प्रतिनिधियों, लीडआईटी सचिवालय और स्वीडन से कंपनी के सदस्यों ने भी भाग लिया।
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन सचिव लीना नंदन ने भारत के विकास में इस्पात क्षेत्र की भूमिका और 2070 तक शुद्ध शून्य (नेट जीरो) उत्सर्जन की ओर यात्रा में इसके अपेक्षित योगदान पर जोर दिया। उन्होंने विकास और जलवायु कार्रवाई के बीच संतुलन की आवश्यकता पर जोर दिया। उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन (पीएलआई), निर्माण क्षेत्र में नवाचार जैसी योजनाओं ने निम्न कार्बन वृद्धि में मदद की है। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि जी20 की भारत की अध्यक्षता के तहत, जी20 के पर्यावरण और जलवायु स्थिरता कार्य समूह (ईसीएसडब्ल्यूजी) ने संसाधन संबंधी दक्षता और चक्रीय अर्थव्यवस्था से जुड़े संवाद को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने इस बात को दोहराया कि नीतियों को जमीनी स्तर पर कार्यान्वित किया जाना चाहिए। इस्पात क्षेत्र के संबंध में उद्योग के पैमाने पर बदलाव के लिए चक्रीयता, सामग्री दक्षता को मुख्यधारा में लाने, विशेष रूप से एमएसएमई क्षेत्र में नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ाने और बदलाव के क्रम में होने वाले जोखिम के प्रबंधन की आवश्यकता है। इस आवश्यक बदलाव के लिए वित्त को प्रमुख प्रेरक तत्वों में से एक के रूप में इंगित किया गया।
इस्पात सचिव नागेंद्र नाथ सिन्हा ने इस बात पर प्रकाश डाला कि उपायों के एक पैकेज के साथ इस्पात क्षेत्र को स्थायी रूप से प्रबंधित करना चाहिए जिससे अर्थव्यवस्था और उद्योग दोनों को लाभ हो। सीसीयूएस जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों, हरित इस्पात पर प्रीमियम और सरकारी खरीद से संबंधित नीतियों पर प्रकाश डाला गया। उन्होंने इस्पात मंत्रालय द्वारा ऊर्जा दक्षता, सीसीयूएस, मांग-पक्ष उपाय, वित्त, निगरानी-रिपोर्टिंग-सत्यापन (एमआरवी) जैसे क्षेत्रों को कवर करते हुए 13 कार्य दल (टास्क फोर्स) के गठन का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि बायोमास, बायोफ्यूल और बायोचार का उपयोग एक महत्वपूर्ण पहलू है, हालांकि इसमें तकनीकी और व्यावसायिक चुनौतियां हैं। नीतिगत उपायों, अनुसंधान एवं विकास, वित्त तक पहुंच और भागीदारी (कंसोर्टिया) आधारित दृष्टिकोण के साथ प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को रेखांकित किया गया। लीडआईटी प्लेटफॉर्म को निम्न-कार्बन की दिशा में बदलाव से संबंधित एजेंडा, प्रौद्योगिकी सह-विकास, तकनीकी सहायता, वित्तीय सहायता और अनुसंधान एवं विकास की सुविधा से जुड़े एक मंच के रूप में देखा गया।
इस कार्यशाला में स्वीडन सरकार, उद्योग प्रतिनिधियों, उद्योग संघ, क्षेत्र के विशेषज्ञों और वित्तीय संस्थानों के पैनलिस्टों के साथ बड़े पैमाने पर इस्पात संयंत्रों और एमएसएमई क्षेत्र पर दो बेहद केन्द्रित पैनल चर्चाएं भी हुईं। पैनल ने इस्पात क्षेत्र में निम्न कार्बन आधारित बदलाव की दिशा में स्वीडन की यात्रा के साथ-साथ वात भट्टी (ब्लास्ट फर्नेस) के उपयोग और सीसीयूएस (कार्बन कैप्चर, उपयोग और भंडारण) का उपयोग करके उत्सर्जन को कम करने जैसी तकनीकी चुनौतियों को साझा किया। जलवायु कार्रवाई के लिए निवेश के अनुरूप व्यावसायिक योजनाओं को ढालने पर जोर दिया गया। अनुसंधान एवं विकास, सह-विकास, क्षमता निर्माण, नीति, राजकोषीय सहायता और नवीन वित्तीय उपकरणों की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया।
इस कार्यशाला से प्राप्त विशिष्ट इनपुट लीडआईटी के आगामी चरण यानी लीडआईटी 2.0 को परिभाषित करने का मार्ग प्रशस्त करेंगे, जिसकी घोषणा दिसंबर, 2023 में संयुक्त अरब अमीरात में यूएनएफसीसी, सीओपी 28 में की जाएगी।