नया साल लाया लिव-इन वालों के लिए खुशखबरी
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, कहा कि बिना शादी के भी लिव-इन में रह सकेंगे कपल। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में मामले की अध्यक्षता करते हुए न्यायमूर्ति अलका सरीन ने बताया कि माता-पिता बच्चों पर जबरदस्ती अपने शर्तों पर जीवन जीने के लिए मजबूर नहीं कर सकते हैं। लिव-इन में रहना प्रत्येक इंसान का निजी मामला होता है। इसमें कोई भी तीसरा व्यक्ति हस्तक्षेप नहीं कर सकता हैं।
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने आगे कहा कि ‘लिव-इन’ कपल की आजादी और अधिकार की रक्षा करनी चाहिए। हालाकि, लड़का लड़की में से अगर कोई विवाह योग्य नहीं भी है फिर भी उनके अधिकारों की रक्षा की जाएगी। अलका सरीन कि सिंगल जज बेंच ने मौजूदा मामलें में कहा कि जोड़े के एक साथ रहने के अधिकार को तब तक अस्वीकार नहीं किया जा सकता, जब तक कि वे कानून की गाइडलाइन के भीतर हैं।
इसके अलावा मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि समाज कौन होता है व्यक्ति के निजी मामले में दखलअंदाजी करने वाला। समाज ये निर्धारित नहीं कर सकता कि व्यक्ति को कैसे और किसे अपना जीवन साथी चुनना चाहिए। संविधान के ‘अनुच्छेद 21’ के अनुसार, हर व्यक्ति को ‘जीवन का अधिकार’ की सुविधा दी गई है। किसी को अपने साथी को चुनने की आज़ादी जीवन के अधिकार का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है।
न्यायमूर्ति अलका सरीन ने आगे कहा कि लड़की के माता-पिता यह तय नहीं कर सकते हैं कि वह वयस्क होने के बाद कैसे और किसके साथ अपना जीवन व्यतीत करेगी। वहीं माता-पिता अपनी शर्तों पर बच्चों को जीवन जीने के लिए मजबूर नहीं कर सकते हैं। अगर लड़का-लड़की लिव-इन रिलेशनशिप पर सहमत हैं तो उनके निर्णय की अवहेलना कोई तीसरा व्यक्ति नहीं कर सकता। न्यायमूर्ति सरिका ने पुलिस को जोड़े के जरिये पेश प्रोटेक्टिव याचिका पर निर्णय लेने और कानून के अनुसार जरुरी कार्यवाही करने का निर्देश दिया। हाईकोर्ट के मुताबिक, आजादी की सुरक्षा में न्यूनतम विवाह योग्य उम्र बाधा नहीं माना जायेगा।
Nisha Jha
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