NewsExpress

News Express - Crisp Short Quick News
कोरोना की दूसरी लहर के दौरान विपक्ष हुआ एकजुट, पहली बार बीजेपी बैकफूट पर…

देश में कोरोना महामारी अपने चरम पर है। इस दौरान विपक्ष बीजेपी द्वारा शासित सरकार को घेरने की जी तोड़ कोशिश कर रही है। मोदी शासित पहले पाँच सालों के कार्यकाल के दौरान कोई ऐसा मौक़ा नहीं आया जब विपक्ष नरेंद्र मोदी को घेर सके और बीजेपी बैकफूट पर दिखाई दी हो। हालाँकि कोरोना की पहली लहर और किसान आंदोलन जैसे विपक्ष को कई ऐसे मौक़े मिले लेकिन सारे मौके को विपक्ष भुनाती चली गई। इस दौरान मोदी सरकार हौसला बढ़ता चला गया वह ‘स्वयं’ में मस्त रही है। खासतौर पर उसे विपक्ष की कोई परवाह नहीं रही। मसला चाहे कोरोना का हो या चीन के साथ सीमा विवाद का, केंद्र ने अधिकांश फैसले अपनी मनमर्जी से लिए हैं।इस दौरान कांग्रेस पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इतना भी कह दिया कि मोदी सरकार ने पिछले साल अपनी मनमर्जी से लॉकडाउन लगा दिया। इस बार भी राज्यों के हाथ में न तो वैक्सीन है और न ही ऑक्सीजन है। आंदोलन कर रहे किसान हार थक कर बैठ गए।

लेकिन अब कोरोना की दूसरी लहर में सरकार की नाकामियाँ निकलकर सामने आने लगी है। इस दौरान ‘विपक्ष’ को एकजुट होने मौक़ा मिला है। इधर बंगाल विधानसभा चुनाव में बीजेपी की मिली करारी हार की वजह से विपक्ष के हौसले मज़बूत हुए है। इस दौरान कोरोना महामारी की भयावह स्थिति के बीच 12 विपक्षी नेताओं द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक संयुक्त पत्र लिखा जाना, इसे विपक्ष के बीच एकजुटता की बानगी कहा जा सकता है। पत्र लिखने वाले नेताओं में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता हेमंत सोरेन, फारूक अब्दुल्ला, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, सीपीआईएम के सीताराम येचुरी, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टॉलिन, आरजेडी नेता तेजस्वी यादव, एनपीसी प्रमुख शरद पवार, बंगाल सीएम ममता बनर्जी, सीपीआई नेता डी राजा, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और एचडी देवगौड़ा का नाम शामिल है।

जेएनयू के पूर्व प्रोफेसर और राजनीतिक मामलों के विशेषज्ञ प्रो. आनंद कुमार कहते हैं, ये बात सही है कि कोरोना जैसी वैश्विक महामारी ने विपक्ष को काफी हद तक एक दूसरे के करीब ला खड़ा किया है। गैर भाजपाई राज्य, केंद्र की मनमर्जी वाली नीतियों से परेशान हैं। मुख्यमंत्रियों को शिकायत है कि उनकी सुनवाई नहीं हो रही। सारे फैसले मोदी सरकार खुद ले रही है। ऐसी स्थिति में विपक्ष की एकजुटता स्वाभाविक है।

कोरोना और बंगाल की हार ने भाजपा के भीतर भी एक कलह की स्थिति पैदा की है। प्रो. आनंद कुमार के मुताबिक, पार्टी में कई नए धड़े सिर उठा सकते हैं। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी से शीर्ष नेता नाराज बताए जाते हैं। लिहाजा, सीएम के चयन के दौरान भी वे शीर्ष नेतृत्व की पहली पसंद नहीं थे। लोकसभा सीटों पर हुए उपचुनाव और पंचायत चुनाव में भाजपा के हिस्से जो कुछ आया है, उससे 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव की राह मुश्किल होती जा रही है।

दूसरा, ममता बनर्जी की प्रचंड जीत ने विपक्ष को एक नई ऊर्जा प्रदान की है। ये बात सभी जानते हैं कि बंगाल में ममता की पार्टी सत्ता में नहीं आती तो आज विपक्षी दल मोदी सरकार के खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। कांग्रेस पार्टी को अपना घर पहले ठीक करना होगा। पांच राज्यों के चुनाव में कांग्रेस पार्टी का बुरा हाल रहा है। इस पार्टी में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है, यह बात पार्टी के ही कई वरिष्ठ नेताओं के मुंह से सामने आ चुकी है। अब ममता बनर्जी को साथ लेकर कांग्रेस पार्टी एवं दूसरे विपक्षी दल एक साथ आगे बढ़ते हैं तो वे मोदी सरकार के लिए अवश्य चुनौती खड़ी कर सकते हैं। हालांकि इन दलों को ईमानदारी से मन की बात करनी होगी।