लोगों को अपनी मातृभाषा बोलने में गर्व अनुभव करना चाहिए : उपराष्ट्रपति नायडू
उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने और उन्हें बदलते समय के अनुकूल बनाने के लिए अभिनव तरीकों के साथ आगे आने का आह्वान किया। यह देखते हुए कि भाषा एक स्थिर अवधारणा नहीं है, उन्होंने भाषाओं को समृद्ध करने के लिए एक गतिशील और सक्रिय दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत पर जोर दिया।
उन्होंने कहा कि भाषा की ‘जीवंत संस्कृति’ को बनाए रखने के लिए एक जन आंदोलन की जरूरत है। उन्होंने इस बात पर भी अपनी प्रसन्नता व्यक्त की कि सांस्कृतिक और भाषाई पुनर्जागरण को लोगों का अधिक से अधिक समर्थन मिल रहा है।
लोगों से अपनी मातृभाषा को बोलने में गर्व महसूस करने का आग्रह करते हुए श्री नायडु ने कहा कि दैनिक जीवन में भारतीय भाषाओं के इस्तेमाल में हीनता की भावना नहीं होनी चाहिए।
उन्होंने ‘तेलुगु भाषा दिवस’ के अवसर पर वीधि अरुगु और दक्षिण अफ्रीकी तेलुगु समुदाय (एसएटीसी) के एक कार्यक्रम को वर्चुअल माध्यम के जरिए संबोधित करते हुए इस बात को माना कि तेलुगु एक प्राचीन भाषा है जिसका सैकड़ों वर्षों का समृद्ध साहित्यिक इतिहास है और उन्होंने इसके इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए नए सिरे से प्रयास करने का आह्वाहन किया।
इस अवसर पर नायडू ने तेलुगु लेखक और भाषाविद श्री गिदुगू वेंकट राममूर्ति को श्रद्धांजलि अर्पित की, जिनके जन्मदिन को प्रत्येक साल ‘तेलुगु भाषा दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने इस साहित्यिक प्रतिरूप (आइकन) की तेलुगु साहित्य को आम लोगों के लिए समझने योग्य बनाने और एक भाषा आंदोलन का नेतृत्व करने के उनके प्रयासों के लिए सराहना की।
भारतीय भाषाओं के इस्तेमाल को संरक्षित करने और बढ़ावा देने के लिए कुछ उपायों की सूची बनाते हुए, उपराष्ट्रपति ने प्रशासन में स्थानीय भाषाओं के उपयोग, बच्चों के बीच पढ़ने की आदत को बढ़ावा देने और शहरों व गांवों में पुस्तकालयों की संस्कृति को प्रोत्साहित करने का सुझाव दिया। उन्होंने विभिन्न भारतीय भाषाओं के साहित्यिक कार्यों का अनुवाद करने के लिए और अधिक पहल करने का भी आह्वाहन किया। उन्होंने इस बात की इच्छा व्यक्त की कि बच्चों को खेल और गतिविधियों के जरिए सरल तरीके से भाषा की बारीकियां सिखाया जाएं।
भाषा और संस्कृति के बीच गहरे संबंध को देखते हुए नायडू ने युवाओं को अपनी जड़ों से फिर से जुड़ने के लिए भाषा का इस्तेमाल करने की सलाह दी। उन्होंने कहा, “भाषा संचार के एक माध्यम से कहीं अधिक है, यह अदृश्य धागा है जो हमारे अतीत, वर्तमान और भविष्य को जोड़ता है।”
उपराष्ट्रपति ने इसका उल्लेख किया कि भाषा न केवल हमारी पहचान का प्रतीक है, बल्कि यह हमारे आत्मविश्वास को भी बढ़ाती है। इसके लिए, उपराष्ट्रपति ने प्राथमिक शिक्षा अपनी मातृभाषा में होने की जरूरत को रेखांकित किया, जिसकी परिकल्पना राष्ट्रीय शिक्षा नीति में की गई है और आखिरकार उच्चतर व तकनीकी शिक्षा तक इसे विस्तारित किया जाना है।
नायडू ने व्यापक पहुंच को सुविधाजनक बनाने के लिए भारतीय भाषाओं में वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली में भी सुधार का सुझाव दिया। उन्होंने कहा, “यह आत्मविश्वास आत्मनिर्भरता की ओर ले जाएगा और धीरे-धीरे आत्मानिर्भर भारत की राह बनाएगा।”
अंत में, नायडू ने कहा कि मातृभाषा को महत्व देने का मतलब अन्य भाषाओं की उपेक्षा नहीं है। उन्होंने इस धारणा को खारिज किया कि कोई व्यक्ति अंग्रेजी में अध्ययन करने पर ही जीवन में सफलता प्राप्त कर सकता है। इसके लिए उन्होंने अपना और राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भारत के मुख्य न्यायाधीश एन. वी. रमन्ना का उदाहरण दिया।
नायडू ने कहा कि इन चारों ने अपनी-अपनी मातृभाषा में विद्यालय की शिक्षा प्राप्त की और इसके बावजूद बहुत उच्च संवैधानिक पदों पर आसीन हुए। उन्होंने सुझाव दिया कि बच्चों को अधिक से अधिक भाषा सीखने के लिए प्रोत्साहित करें, इसकी शुरुआत अपनी मातृभाषा में एक मजबूत नींव के साथ करें।