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रविश कुमार ब्लॉग: नरेंद्र मोदी क्रिकेट स्टेडियम किसान आंदोलन की सबसे बड़ी जीत है, बस किसानों की नहीं

भारत के नेताओं की एक खूबी है. वे काम की जगह नाम के अमरत्व में विश्वास करते हैं. उन्हें पता है कि काम अमर नहीं होता है. वह नश्वर है. नाम अमर होता है. जब तक सूरज चांद रहेगा तब तक. इसलिए भारत का नेता अपने नाम की एक डेडलाइन भी तय कर देता है. उसे चाह होती है कि उसके नाम पर योजना हो. परियोजना हो. किसी योजना को राष्ट्र को समर्पित करने से पहले किसी नाम को समर्पित करे. इस प्रक्रिया में वह अपने दल से महान नेताओं का चुनाव करता है. उन्हीं के नाम पर सड़कें बनवाता है. योजनाएं लॉन्च करता है. शिलान्यास करता है. उद्घाटन करता है. वह नामजीवी बन जाता है. उसे पता है नाम ही जड़ है. नाम ही परिवर्तनशीलता है. नाम को ही बड़ा करना है. नाम को ही छोटा करना है. नाम का इस्तमाल तलवार की तरह भी होता है और हार की तरह भी.

एक ऐसे समाज में जब नब्बे दिनों से किसान कृषि क़ानूनों के विरोध के दौरान अंबानी और अडानी के नाम से भी नारे लगा रहे हैं, राहुल गांधी हम दो और हमारे दो के आरोप मढ़ रहे हैं, अमित शाह अहमदाबाद में एक क्रिकेट स्टेडियम का नाम नरेंद्र मोदी क्रिकेट स्टेडियम रख देते हैं. जिसके भीतर एक छोर का नाम रिलायंस एंड है और दूसरे छोर का अडानी एंड.

इस लिहाज़ से नरेंद्र मोदी क्रिकेट स्टेडियम शरद पवार के नाम से बने स्टेडियम या किसी दूसरे जीवित नेताओं के नाम पर बनी मूर्ति से थोड़ा अलग मामला बन जाता है. नाम रखने में कोई बड़ी बात नहीं लेकिन किस चीज़ का और किसके साथ नाम रखा गया है बात उसमें है.

नरेंद्र मोदी ने विपक्ष और उन्हें जवाब दिया है जो कहते हैं कि उनकी सरकार अडानी-अंबानी की दुकान है. आम तौर पर प्रधानमंत्री स्तर के नेता ऐसे आरोपों से लजाते सकुचाते हैं मगर कहा जा सकता है कि नरेंद्र मोदी ने खुलकर अपने जवाब का इज़हार किया है. आप सभी ने कई बार विपक्ष के राजनीतिक आरोपों में सुना होगा कि अडानी और अंबानी के खर्चे से फ़लाँ दल और उसकी सरकार चलती है. यह आरोप तो कांग्रेस पर भी लगता है.

भारत के राजनीतिक हलकों में यह स्वीकृत-अस्वीकृत सच है. अब यह एक खुला प्रश्न है कि स्टेडियम के नामकरण से नरेंद्र मोदी ख़ुद इन आरोपों को हवा दे रहे हैं या सच साबित कर रहे हैं ? सोशल मीडिया पर कई लोग भारत इंग्लैंड मैच के स्क्रीन शॉट लेकर बता रहे हैं कि एक छोर का नाम अंबानी एंड है और दूसरे का अडानी एंड है. वैसे एक छोर का नाम रिलायंस के नाम पर है लेकिन जनता रिलायंस को अंबानी ही कहती है. कमेंट्री में यह बात अनेक बार आएगी कि नरेंद्र मोदी स्टेडियम में रिलायंस छोर से गेंदबाज़ तैयार है और अडानी छोर से बल्लेबाज़. जनता से छिप कर अंबानी और अडानी से वित्तीय अमृत पीने वाले नेताओं को नरेंद्र मोदी ने चुनौती दी है. वे अपने संबंधों को सामने से जीते हैं.

किसी प्रधानमंत्री ने अडानी और अंबानी को इतना सार्वजनिक मान नहीं दिया होगा. कल का दिन बेशुमार दौलत के मालिक अडानी और अंबानी के लिए वेलेंटाइन डे से कम ख़ुशनुमा नहीं रहा होगा. उन्होंने निवेश तो कई नेताओं में किए लेकिन ऐसा रिटर्न किसी ने न दिया होगा. नरेंद्र मोदी क्रिकेट स्टेडियम अडानी एंड और रिलायंस एंड के साथ आज करोड़ों घरों में पहुंच रहा है. हम दो हमारे दो अगर आरोप है तो आरोप ही सही! राजनीति में नेता अपने प्रतीकों का चुनाव बहुत सावधानी से करते हैं. कई बार वह खुद विडंबनाओं को सामने रखता है और कई बार विडंबनाएं खुद सामने आ जाती हैं. इसी गांधीनगर में बिहार के कुख्यात नेता साधु यादव से नरेंद्र मोदी मिलते हैं.

अगस्त 2013 की बात है. आज भी हर दिन उनकी पार्टी बिहार में साधु और सुभाष का नाम लेकर अराजकता की याद दिलाती है. मुलाक़ात के समय साधु यादव कांग्रेस में थे. साधु ने बताया कि शिष्टाचार की मुलाक़ात 40-50 मिनट की थी! स्टेडियम का नाम एक जवाब है कि नरेंद्र मोदी बहुत परवाह नहीं करते हैं कि विपक्ष उन्हें अडानी और अंबानी का पॉकेट लीडर बताता है. मेरी राय में यह स्टेडियम किसान आंदोलन की सबसे बड़ी जीत है. बस यह किसानों की जीत नहीं है. नरेंद्र मोदी, अडानी और अंबानी की जीत है. किसान आंदोलन ने अगर गांव-गांव घर-घर पहुंचा दिया कि सरकार अडानी-अंबानी को सब बेच देगी, नरेंद्र मोदी स्टेडियम भी क्रिकेट के ज़रिए उन्हीं गांव घरों में अडानी और अंबानी का नाम लेकर पहुंचेगा. जनता जो समझे.

रविश कुमार
(लेखक NDTV में पत्रकार है)