NewsExpress

News Express - Crisp Short Quick News
ये हैं किसान आंदोलन के मुख्य कारण

केंद्र सरकार के कृषि कानून 2020 के खिलाफ पंजाब और हरियाणा के हजारों किसान दिल्ली में धरना प्रदर्शन कर रहे हैं. इस प्रदर्शन को रोकने के लिए हरियाणा और पंजाब सरकार ने अपने बॉर्डर सील कर दिए हैं. इसके अलावा भारी पुलिस फोर्स भी तैनात किए गए हैं. सरकार की तरफ से ये साफ कर दिया गया है कि जो कानून बनाया गया है,वे किसानों के हित में है.

सरकार जो बात एक्ट में नहीं लिख रही है उसी का वादा बाहर कर रही है इसलिए किसान भ्रमित हैं. सरकार अपने ऑफिशियल बयान में एमएसपी जारी रखने और मंडियां बंद न होने का वादा कर रही है, पार्टी फोरम पर भी यही कह रही है, लेकिन यही बात एक्ट में नहीं लिख रही. इसलिए शंका और भ्रम है. किसानों को लगता है कि सरकार का कोई भी बयान एग्रीकल्चर एक्ट में एमएसपी की गारंटी देने की बराबरी नहीं कर सकता. क्योंकि एक्ट की वादाखिलाफी पर सरकार को अदालत में खड़ा किया जा सकता है, जबकि पार्टी फोरम और बयानों का कोई कानूनी आधार नहीं है. हालांकि, सरकार सिरे से किसानों की इन आशंकाओं को खारिज कर रही है.

आइए अब नज़र डालते हैं किसान आंदोलन के मुख्य कारणों पर।

1. सबसे पहला और मुख्य कारण ये है कि किसानों को सबसे बड़ा डर न्यूनतम समर्थन मूल्य खत्म होने का है. इस बिल के जरिए सरकार ने कृषि उपज मंडी समिति यानी मंडी से बाहर भी उनका कारोबार का रास्ता खोल दिया है.बता दें कि मंडी से बाहर भी ट्रेड एरिया घोषित हो गया है. मंडी के अंदर लाइसेंसी ट्रेडर किसान से उसकी उपज एमएसपी पर लेते हैं, लेकिन बाहर कारोबार करने वालों के लिए एमएसपी को बेंचमार्क नहीं बनाया गया है. इसलिए मंडी से बाहर एमएसपी मिलने की कोई गारंटी नहीं है.

2. इस बिल से ‘वन कंट्री टू मार्केट’ वाली नौबत पैदा होती नजर रही है. क्योंकि मंडियों के अंदर टैक्स का भुगतान होगा और मंडियों के बाहर कोई टैक्स नहीं लगेगा. अभी मंडी से बाहर जिस एग्रीकल्चर ट्रेड की सरकार ने व्यवस्था की है उसमें कारोबारी को कोई टैक्स नहीं देना होगा. जबकि मंडी के अंदर औसतन 6-7 फीसदी तक का मंडी टैक्स लगता है.

3. किसानों की ओर से यह तर्क दिया जा रहा है कि आढ़तिया या व्यापारी अपने 6-7 फीसदी टैक्स का नुकसान न करके मंडी से बाहर खरीद करेगा. जहां उसे कोई टैक्स नहीं देना है. इस फैसले से मंडी व्यवस्था हतोत्साहित होगी. मंडी समिति कमजोर होंगी तो किसान धीरे-धीर बिल्कुल बाजार के हवाले चला जाएगा. जहां उसकी उपज का सरकार द्वारा तय रेट से अधिक भी मिल सकता है और कम भी. किसानों की इस चिंता के बीच राज्‍य सरकारों-खासकर पंजाब और हरियाणा- को इस बात का डर सता रहा है कि अगर निजी खरीदार सीधे किसानों से अनाज खरीदेंगे तो उन्‍हें मंडियों में मिलने वाले टैक्‍स का नुकसान होगा. दोनों राज्यों को मंडियों से मोटा टैक्स मिलता है, जिसे वे विकास कार्य में इस्तेमाल करते हैं. हालांकि, हरियाणा में बीजेपी का शासन है इसलिए यहां के सत्ताधारी नेता इस मामले पर मौन हैं.

4. एक बिल कांट्रैक्ट फार्मिंग से संबंधित है. इसमें किसानों के अदालत जाने का हक छीन लिया गया है. कंपनियों और किसानों के बीच विवाद होने की सूरत में एसडीएम फैसला करेगा. उसकी अपील डीएम के यहां होगी न कि कोर्ट में. किसानों को डीएम, एसडीएम पर विश्वास नहीं है क्योंकि उन्हें लगता है कि इन दोनों पदों पर बैठे लोग सरकार की कठपुतली की तरह होते हैं. वो कभी किसानों के हित की बात नहीं करते.