विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर आधारित अभिनव तरीकों के जरिए कला व संगीत
वर्ष 2023 के लिए घोषित 106 पद्म पुरस्कार विजेताओं में जमीनी स्तर के नवप्रवर्तक आंध्र प्रदेश के सी. वी. राजू और नगालैंड के मोआ सुबोंग शामिल हैं। इन दोनों को पद्मश्री प्रदान किया गया है।
सी. वी. राजू को यह सम्मान पर्यावरण के अनुकूल तकनीकों को अपनाकर एटिकोप्पाका खिलौने बनाने की पारंपरिक कला को फिर से जीवित करने के संबंध में किए जाने वाले प्रयासों के लिए दिया गया है। वहीं, मोआ सुबोंग को नगा लोक संगीत बनाने के विज्ञान और प्रौद्योगिकी आधारित अभिनव तरीकों के लिए सम्मानित किया जाएगा।
इन दोनों को उनकी संबंधित तकनीकों को आगे बढ़ाने के लिए विभिन्न रूपों में राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान (एनआईएफ)- भारत की ओर से सहायता प्रदान की गई है। यह प्रतिष्ठान भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के अधीन एक स्वायत्त निकाय है।
इससे पहले साल 2002 में तत्कालीन माननीय राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने सी. वी. राजू को हर्बल खिलौनों के लिए और 2017 में तत्कालीन माननीय राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने मोआ सुबोंग को उनके एक अभिनव पवन संगीत वाद्ययंत्र- बमहम के लिए एनआईएफ द्विवार्षिक राष्ट्रीय जमीनी नवाचार और उत्कृष्ट पारंपरिक ज्ञान पुरस्कार प्रदान कर पहली बार प्रमुख मान्यता दी थी।
आंध्र प्रदेश स्थित विशाखापत्तनम के एटिकोप्पाका गांव निवासी के सी. वी. राजू एटिकोप्पाका खिलौने बनाने की पारंपरिक विधि को संरक्षित कर रहे हैं। यह उनके गांव की एक विरासत है, जिसमें वानस्पतिक रंजक बनाकर और रंजक के जीवन को बढ़ाने के लिए तकनीकों का विकास किया जाता है। उन्होंने कई तरह के समकालीन खिलौने विकसित किए हैं, जिनके लिए भारत और विदेशों में बाजार उभरता रहता है।
गैर-विषैले पेंट और प्राकृतिक रंगों का उपयोग करके लकड़ी के खिलौने बनाने की यह पारंपरिक विधि, वह पहचान है, जिसने दक्षिणी भारत के एटिकोप्पाका गांव के शिल्प समुदाय को परिभाषित किया, नहीं तो यह एक विलुप्त हो रही एक कला थी। सी. वी. राजू ने “पद्मावती एसोसिएट्स” नाम से कारीगरों का एक सहकारी संघ शुरू किया, जिससे अभिनव रंग उचित बाजारों तक पहुंच सकें।
उन्होंने वानस्पतिक रंजक बनाने की स्थानीय परंपराओं को मजबूत करने की रणनीति विकसित की और रंगों के जीवन को बढ़ाने के लिए नए उपकरण, तकनीक व तरीके विकसित किए। इससे समय के साथ कई हर्बल रंगों की आपूर्ति बढ़ने लगी, जिससे कारीगरों के लिए चीजें आसान हो गईं। एटिकोप्पाका खिलौने अच्छी तरह गोल आकार के होते हैं और प्राकृतिक रंजक रंगों का उपयोग करके बनाए जाते हैं। यह उन्हें बच्चों के लिए भी सुरक्षित बनाता है। इसे ध्यान में रखते हुए सी. वी. राजू पारंपरिक कला रूप से जुड़े रहे। इसके अलावा उन्होंने अपने साथी कारीगरों को भी इसमें शामिल किया और उन्हें स्थानीय स्तर पर अपने गांव में ही रोजगार प्रदान किया।
एनआईएफ ने कार्यशील पूंजी की जरूरतों को पूरा करने, मूल्यवर्धन के लिए समर्थन और नवप्रवर्तक के परिसर में एक सामुदायिक प्रयोगशाला की स्थापना के लिए माइक्रो वेंचर इनोवेशन फंड (एमवीआईएफ) के जरिए राजू को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराकर उनके प्रयासों का समर्थन किया है। यह स्थानीय स्तर पर उत्पाद सुधार, अनुसंधान व विकास, खिलौनों की हर्बल प्रकृति को मान्य करने व अन्य उद्यमों को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और पूरे देश में प्रचार और प्रसार गतिविधियों के माध्यम से व्यावसायीकरण की सुविधा प्रदान कर सकता है।
नगालैंड स्थित दीमापुर के मोआ सुबोंग ने बमहम नामक एक वाद्य यंत्र विकसित किया है, जो बांस से बना एक नया पवन वाद्य यंत्र है। बमहम नाम दो शब्दों- बम्बू और हमिंग से बना है। बमहम बजाना सरल है, किसी को केवल हम छिद्र में एक धुन गुनगुनाना है, जो एक मधुर धुन उत्पन्न करती है। इसका अनूठापन इसकी सादगी और उपयोग में आसानी को लेकर है। इसे अकेले गुनगुनाने या संगीत गायक मंडली के एक हिस्से के तहत एक अप्रशिक्षित व्यक्ति द्वारा और वाद्य गीतों के रूप में प्लेबैक (गाने का) प्रदान करने वाले प्रमुख उपकरण के रूप में उपयोग किया जा सकता है। यह अन्य संगीत वाद्ययंत्रों के साथ अच्छी तरह से मिश्रित होता है और संगीत की किसी भी शैली के लिए इसका उपयोग किया जा सकता है।
एनआईएफ ने मोआ सुबोंग को भी कई तरह से सहायता प्रदान की है, चाहे वह मूल्यवर्धन हो या वित्तीय जरूरतों को पूरा करना। इनके लिए व्यावसायिक अवसरों को बढ़ाने के उद्देश्य से एनआईएफ के समर्थन से एक संस्थान की स्थापना की गई थी, जिसे बाद में एक स्टार्ट-अप के रूप में मान्यता प्रदान की गई।