सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने मैनुअल स्केवेंजर्स अधिनियम 2013 के कार्यान्वयन की समीक्षा के लिए केंद्रीय निगरानी समिति की आठवीं बैठक का आयोजन किया

केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री डॉ. वीरेंद्र कुमार ने आज नई दिल्ली के डॉ. अंबेडकर अंतर्राष्ट्रीय केंद्र में केंद्रीय निगरानी समिति की आठवीं बैठक की अध्यक्षता की। बैठक में “मैनुअल स्केवेंजर्स के रूप में रोजगार का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013” (एमएस अधिनियम, 2013) के कार्यान्वयन की समीक्षा की जाएगी। यह महत्वपूर्ण केंद्रीय अधिनियम सितंबर, 2013 में संसद द्वारा अधिनियमित किया गया था और दिसंबर, 2014 में इस अधिनियम को लागू हुआ। इसका उद्देश्य हाथ से मैला साफ करने की प्रथा को उसके विभिन्न रूपों में पूरी तरह से समाप्त करना और पहचाने गए हाथ से मैला साफ करने वालों का व्यापक पुनर्वास करना है। बैठक में केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय में राज्य मंत्री, श्री रामदास अठावले, अध्यक्ष, राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग, सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग (डीओएसजेई) के सचिव, राज्यों के प्रमुख सचिव/सचिव और केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों/आयोगों के प्रतिनिधि उपस्थित थे।

समीक्षा बैठक के दौरान सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा 24.12.2020 को शुरू किए गए मोबाइल ऐप “स्वच्छता अभियान” पर चर्चा की गई, ताकि अब भी मौजूद अस्वच्छ शौचालयों और उनसे जुड़े मैनुअल स्केवेंजरों का डेटा एकत्र किया जा सके। ऐप को गूगल प्ले स्टोर से नि:शुल्क डाउनलोड किया जा सकता है। समिति ने कहा कि कोई भी अस्वच्छ शौचालयों की मौजूदगी या हाथ से मैला ढोने की प्रथा के बारे में जानकारी अपलोड कर सकता है। समिति ने इस बात पर संतोष व्यक्त किया कि पिछले 3 वर्षों में ऐप पर अपलोड किए गए प्रत्येक कथित ऐसे उदाहरण की व्यक्तिगत रूप से जांच की गई है और किसी भी अस्वच्छ शौचालय या मैनुअल स्कैवेंजिंग के अस्तित्व का कोई भी प्रमाण नहीं मिला है।

समिति ने कहा कि स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत अधिकांश अस्वच्छ शौचालयों को स्वच्छता शौचालयों में परिवर्तित करने से हाथ से मैला ढोने की समस्या समाप्त हो गई। वर्तमान में हाथ से मैला ढोने की प्रथा जारी रहने का कोई प्रमाण नहीं है।

सभी राज्यों/जनपदों से अनुरोध किया गया है कि वे अपने जनपद को हाथ से मैला ढोने की प्रथा से मुक्त घोषित करें। आज तक, देश के 766 जनपदों में से 520 जनपदों से ऐसी पुष्टि पहले ही प्राप्त हो चुकी है। समिति ने शेष जनपदों का अनुसरण करने का सुझाव दिया।

समिति को सूचित किया गया कि सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने वर्ष 2013 और वर्ष 2018 में मैनुअल स्कैवेंजर्स के दो सर्वेक्षण शुरू किए। इन सर्वेक्षणों के दौरान, कुल 58,098 पात्र मैनुअल स्कैवेंजर्स की पहचान की गई थी और उन सभी को 40,000/- रुपये राशि की एकमुश्त नकद सहायता प्रदान की गई है। इनमें से 22,294 इच्छुक पहचाने गए मैनुअल स्कैवेंजर्स/आश्रितों को कौशल विकास प्रशिक्षण प्रदान किया गया है और 2,313 मैनुअल स्कैवेंजर्स/आश्रितों के संबंध में पूंजीगत सब्सिडी जारी की गई है, जिन्होंने स्व-रोज़गार परियोजनाओं के लिए बैंक से ऋण लिया है। इसके अलावा, सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान मृत्यु को कम करने के लिए 641 सफाई कर्मचारियों और उनके आश्रितों को स्वच्छता संबंधी परियोजनाओं के लिए पूंजीगत सब्सिडी स्वीकृत की गई है।

समिति को सूचित किया गया कि अब मुख्य ध्यान यह सुनिश्चित करने पर होगा कि सीवर या सेप्टिक टैंक की सफाई से संबंधित सभी गतिविधियाँ आवश्यक सुरक्षा सावधानियों का पालन सुनिश्चित करते हुए सुरक्षात्मक उपकरण और यांत्रिक सफाई उपकरणों का उपयोग करके की जाएं।

इस उद्देश्य के लिए, राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी वित्त एवं विकास निगम ने नगर पालिकाओं और ठेकेदारों के कर्मचारियों को सीवर और सेप्टिक टैंकों की मशीनीकृत सफाई और एमएस अधिनियम, 2013 और एमएस नियम, 2013 के प्रावधानों के बारे में जागरूक करने के लिए अब तक 1,177 कार्यशालाएं आयोजित की हैं।

इसके अलावा, जोखिमभरी सफाई की प्रक्रिया को समाप्त करने, सीवर और सेप्टिक टैंक श्रमिकों की मृत्यु के मामलों को रोकने और उनकी सुरक्षा और सम्मान सुनिश्चित करने के लिए, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय तथा आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय ने संयुक्त रूप से यंत्रीकृत स्वच्छता इको-सिस्टम के लिए राष्ट्रीय कार्रवाई (नमस्ते) नामक एक योजना तैयार की है। यह योजना वर्ष 2025-26 तक तीन वर्षों के दौरान देश के सभी 4800 से अधिक शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) में 349.70 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ लागू की जाएगी। संयुक्त रूप से यंत्रीकृत स्वच्छता इको-सिस्टम के लिए राष्ट्रीय कार्रवाई (नमस्ते) योजना को लागू करने के लिए, राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों और शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) को निम्नलिखित कार्रवाई करने की आवश्यकता है:

यंत्रीकृत स्वच्छता इको-सिस्टम के लिए राष्ट्रीय कार्रवाई (नमस्ते) योजना के कार्यान्वयन और अनुवर्ती कार्रवाई के लिए शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) को संवेदनशील बनाना।
प्रत्येक जनपद में दायित्वपूर्ण स्वच्छता प्राधिकरण (आरएसए) का नामांकन सुनिश्चित करें।
प्रत्येक बड़े शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) में स्वच्छता प्रतिक्रिया इकाई (आरएसयू) की स्थापना सुनिश्चित करें।
प्रत्येक स्वच्छता प्रतिक्रिया इकाई (आरएसयू) में हेल्पलाइन नंबर चालू करें।
प्रबंधन सूचना प्रणाली (एमआईएस) पोर्टल के माध्यम से सीवर और सेप्टिक टैंक श्रमिकों (एसएसडब्ल्यू) की प्रोफाइलिंग की जाए।
स्वच्छता संबंधी परियोजनाओं के लिए सीवर/सेप्टिक टैंक श्रमिकों का स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) का गठन।
स्वच्छता संबंधी परियोजनाओं के लिए सफाई कर्मचारियों को कार्य आश्वासन प्रदान करना।
राज्य स्तर/शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) स्तर पर अधिकारियों/राज्य मिशन निदेशकों का नामांकन करना।
सीवर की सफाई करने के लिए प्रवेश करने वाले पेशेवरों और स्वच्छता प्रतिक्रिया इकाई (आरएसयू) कर्मचारियों को प्रशिक्षण प्रदान करना।
सीवर की सफाई करने के लिए प्रवेश करने वाले पेशेवरों के लिए व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) प्रदान करना।
शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) में जागरूकता पैदा करना।
स्वच्छ सर्वेक्षण के अंतर्गत यंत्रीकृत स्वच्छता इको-सिस्टम के लिए राष्ट्रीय कार्रवाई (नमस्ते) योजना के हस्तक्षेपों का मूल्यांकन किया जाएगा।
जोखिमभरी सफाई के लिए मशीनरी और विशेष श्रमिकों का विवरण शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) के पोर्टल पर अपलोड करना।
समिति ने यंत्रीकृत स्वच्छता इको-सिस्टम के लिए राष्ट्रीय कार्रवाई (नमस्ते) योजना के घटकों पर गौर किया और सुझाव दिया कि गतिविधियों को सख्ती से आगे बढ़ाया जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रत्येक स्थानीय प्राधिकरण सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई के लिए उचित तकनीकी उपकरणों का प्रभावी ढंग से उपयोग करता है।

समिति को अवगत कराया गया कि जहां भी सुरक्षा सावधानियों का पालन न करने के कारण कोई दुखद मौत होती है, ऐसे मामलों में पीड़ितों के परिवारों को मुआवजे के भुगतान का मामला शीघ्रता से किया जाता है और ऐसी लापरवाही के लिए जिम्मेदार एजेंसियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए राज्यों के साथ नियमित रूप से बातचीत की जाती है। समिति ने कहा कि ऐसे मामले कम हो रहे हैं और निर्देश दिया कि ऐसी स्वच्छता संबंधी गतिविधियों में शून्य मृत्यु का लक्ष्य जल्द से जल्द हासिल किया जाए।