शिक्षकों का सम्मान करना भारतीय संस्कृति की गौरवशाली परम्परा है: उपराष्ट्रपति नायडू
उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने बच्चों और युवाओं के जीवन को आकार देने में शिक्षकों द्वारा निभाई गई बुनियादी भूमिका के महत्व पर जोर दिया और कहा कि भारतीय संस्कृति में हमेशा ही गुरुओं को आदर और सम्मान दिया गया है।
उपराष्ट्रपति के शिक्षक पोलुरी हनुमज्जनाकिरामा सरमा की स्मृति में शुरू की गई एक पुरस्कार को हैदराबाद में कविता और साहित्य के क्षेत्र में किए गए योगदान के लिए श्री कोवेला सुप्रसन्नाचार्य को प्रदान करते हुए, नायडू ने स्वर्गीय हनुमज्जनाकिरामा सरमा सहित अपने गुरुओं को श्रद्धांजलि अर्पित की।
नायडू ने तेलुगु साहित्य में आलोचना का एक नया चलन शुरू करने और समाज के कुछ वर्गों में भेदभाव के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले भारतीय विचारकों के विचारों को शामिल करने के लिए पुरस्कार विजेता की सराहना की।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि हर किसी को भविष्य को आकार देने में मार्गदर्शन व संरक्षण के लिए अपने शिक्षकों और गुरुओं को हमेशा याद रखना चाहिए और उनके प्रति आभारी रहना चाहिए।
उपराष्ट्रपति की व्यक्तिगत पहल पर तेलंगाना सारस्वथ परिषद द्वारा शुरू किए गए इस पुरस्कार का उद्देश्य तेलुगु भाषा में दिए गए योगदान को मान्यता देना है।
तेलुगु भाषा के संरक्षण और बढ़ावा देने में तेलंगाना सारस्वथ परिषद के प्रयासों की सराहना करते हुए, उन्होंने दोहराया कि प्राथमिक स्कूल या हाई स्कूल तक शिक्षा का माध्यम मातृ भाषा होनी चाहिए। इसी प्रकार, प्रशासन और न्यायिक व्यवस्था में व्यापक रूप से स्थानीय भाषा का उपयोग होना चाहिए।
इस अवसर पर, उपराष्ट्रपति ने ‘अमृतोत्सव भारती’ और ‘श्री देवुलापल्ली रामानुजरा’ शीर्षक वाली दो पुस्तकों का भी विमोचन किया।