राज्यों की सफलता तभी है, जब पराली जलाने के मामले शून्य हो जाएं: तोमर
केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने धान की पराली जलाने के प्रबंधन के लिए राज्यों की तैयारियों की आज उच्चस्तरीय बैठक में समीक्षा की।
बैठक में तोमर ने कहा कि इस मामले में राज्यों की सफलता तभी है, जब पराली जलाने के मामले शून्य हो जाएं और यहीं आदर्श स्थिति होगी। श्री तोमर ने कहा कि इस संबंध में लक्ष्य हासिल करने के लिए सभी को ज्यादा से ज्यादा जागरूक किया जाएं तथा बहुआयामी एवं दूरगामी योजना बनाकर उसका गंभीरता से क्रियान्वयन किया जाएं। उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार इस मामले में चिंतित है और फसल अवशेष प्रबंधन योजना के अंतर्गत चालू वित्तीय वर्ष में भारत सरकार ने राज्यों को 600 करोड़ रुपये जारी किए हैं।
तोमर ने कहा कि राज्यों को पिछले 4 वर्षों के दौरान पहले से आपूर्ति की गई 2.07 लाख मशीनों का प्रभावी उपयोग सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा व दिल्ली के उच्चाधिकारियों तथा कृषि मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ वर्चुअल बैठक में समीक्षा करते हुए केंद्रीय कृषि मंत्री तोमर ने कहा कि राज्यों की तैयारियां ऐसी हो कि एक निश्चित लक्ष्य अवधि में फसल अवशेष जलाने की समस्या से मुक्ति मिल सकें। राज्यों को गंभीरता से यह सोचना चाहिए कि इस समस्या का त्वरित गति से समाधान कैसे किया जा सकता है। श्री तोमर ने कहा कि पराली जलाने से पर्यावरण को तो नुकसान होता ही है, किसानों के खेतों पर भी इसका नकारात्मक असर पड़ता है, जिससे अंततः किसान, राज्य व देश को भी नुकसान होता है।
तोमर ने कहा कि पूसा संस्थान द्वारा तैयार बायो-डीकंपोजर, पराली की समस्या के समाधान की दिशा में महत्वपूर्ण है, जो सस्ता भी है, इसके अधिकाधिक उपयोग पर जोर दिया जाना चाहिए, साथ ही किसानों को ऐसे खेतों पर ले जाकर पूसा संस्थान की इस पद्धति का अवलोकन कराया जाना चाहिए ताकि उन्हें पता चलें कि इसका किस तरह से फायदा हो रहा है। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि हमें वेस्ट को वैल्थ में बदलने की कोशिश करना चाहिए।
बैठक में बताया गया कि यूपीएल समूह द्वारा पराली प्रबंधन के संबंध में पूसा संस्थान व राज्य सरकारों के साथ मिलकर अच्छा कार्य किया जा रहा है। सभी उपलब्ध संसाधनों के प्रभावी उपयोग और सघन जागरूकता अभियान के माध्यम से राज्यों के स्तर पर एक बहुआयामी दृष्टिकोण आवश्यक है। फसल अवशेष प्रबंधन में फसल की आयु महत्वपूर्ण है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने ऐसे बीजों की प्रजाति विकसित की है, जिससे इस समस्या के समाधान में मदद मिलना संभव है। राज्यों से इसकी जानकारी किसानों तक पहुंचाने का अनुरोध किया गया।