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देश में तांबे की रीसाइक्लिंग को बढ़ावा देने के लिए इस धातु के स्क्रैप पर आयात शुल्क 5% से घटकर 2.5% किया गया, इसकी घोषणा केंद्रीय बजट 2021-22 में की गई थी

देश में तांबे की रीसाइक्लिंग को बढ़ावा देने के लिए केंद्रीय बजट 2021-22 में तांबे के स्क्रैप पर आयात शुल्क को 5% से घटाकर 2.5% करने की घोषणा की गई। इससे सामाजिक, पर्यावरणीय और आर्थिक लाभ होंगे, साथ ही रोजगार के अवसर की संभावनाएं भी होंगी।

धातु के रीसाइक्लिंग से संसाधन क्षमता में सुधार होता है, क्योंकि इससे संपत्ति का कोई नुकसान नहीं होता है। यह आर्थिक रूप से व्यवहार्य, ऊर्जा कुशल और पर्यावरण के अनुकूल है। आज उत्पादित धातु कल के लिए स्क्रैप है और इस प्रकार यह फिर से एक संसाधन बन जाता है। तांबे के स्क्रैप पर आयात शुल्क में कमी से देश में रीसाइक्लिंग को बढ़ावा मिलेगा, क्योंकि बुनियादी कच्चे माल किफायती हो जाएंगे।

आर्थिक लाभ: तांबे के स्क्रैप का उपयोग करके, घरेलू कंपनियां प्रतिस्पर्धा और लाभ में सुधार कर सकती हैं। पुनर्चक्रण आधारित नवाचार भी उद्योगों को निर्यात बाजार में बढ़त दे सकते हैं। पुनर्नवीनीकरण सामग्री से नए डिजाइन और विनिर्माण पर ध्यान देने के साथ रीसाइक्लिंग सेक्टर में नए उद्योग बनाए जा सकते हैं। महत्वपूर्ण खनिजों के लिए आयात पर निर्भरता कम होने से देश के व्यापार संतुलन को बेहतर बनाने और आर्थिक स्थिरता को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी।

सामाजिक लाभ: भारत के खनिज समृद्ध क्षेत्र घने जंगलों में हैं, जहां स्थानीय समुदाय बसे हुए हैं। खनिजों का निष्कर्षण स्थानीय समुदायों को प्रभावित करता है। रीसाइक्लिंग से खनिजों के निष्कर्षण की आवश्यकता को काफी हद तक कम किया जा सकता है, जिससे इस मुद्दे पर सामाजिक संघर्षों से उत्पन्न कुछ समस्याओं का समाधान हो सकता है।

पर्यावरण से जुड़े लाभ: खनीजों के निष्कर्षण के परिणामस्वरूप अक्सर पारिस्थितिक क्षरण होता है। रीसाइक्लिंग को अपनाने के कारण कम किए गए निष्कर्षण के दबाव से पारिस्थितिक क्षरण और खनन के कारण होने वाले प्रदूषण को रोकने में मदद मिलेगी।

रोजगार सृजन क्षमता: पुनर्चक्रण और संबंधित नए तरीकों को अपनाना, पूरी तरह से नए उद्योगों की स्थापना की आवश्यकता को जन्म दे सकता है जो रोजगार सृजन में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। पुनर्चक्रण प्रक्रिया और विनिर्माण में नवाचार से अत्यधिक कुशल रोजगार पैदा होंगे, जिससे घरेलू उद्योगों को लाभ मिल सकेगा। साथ ही निर्यात बाजार के लिए क्षमता विकसित की जा सकेगी। यह आगे वैश्विक कंपनियों को कुशल डिजाइन और / या विनिर्माण इकाइयों का पता लगाने के लिए प्रेरित कर सकता है, जिससे कुशल / अकुशल श्रम मांग में वृद्धि होगी।

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Ankit Anand