उपराष्ट्रपति ने 2024 के पेरिस ओलंपिक्स में भारत की पदक संख्या दोगुनी करने का आह्वान किया
उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने आज टोक्यो ओलंपिक्स में हमारे खिलाड़ियों के प्रदर्शन की सराहना की और उन्होंने 2024 के पेरिस ओलंपिक्स में भारत की पदकों की संख्या दोगुनी करने का आह्वान किया। उन्होंने निजी क्षेत्र सहित सभी हितधारकों से आग्रह किया कि वे हमारे युवा और उदीयमान एथलीटों के लिये आमूल समर्थन प्रणाली तैयार करें।
एसआरएम इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के तिरुचिरापल्ली परिसर का चेन्नई राज भवन से वर्चुअल माध्यम से उद्घाटन करते हुये उपराष्ट्रपति ने कहा कि टोक्यो ओलंपिक्स और पैरालिम्पिक्स में भारत के शानदार प्रदर्शन से हमारे देशवासियों की छाती गर्व से चौड़ी हो गई है।
हमारे पैरालिम्पियनों की दृढ़ता और साहस की सराहना करते हुये उन्होंने कहा कि उनके अनुकरणीय प्रदर्शन से न सिर्फ दिव्यांगता के प्रति लोगों के नजरिये में बदलाव आया है, बल्कि भारत के एक बड़ी खेल महाशक्ति के रूप में उभरने की उम्मीद भी जगी है। याद रहे कि पैरालिम्पिक्स में भारत के एथलीटों ने रिकॉर्ड 19 पदक हासिल किये हैं।
उन्होंने कहा, “हमारे यहां कई अवनि लेखरा और नीरज चोपड़ा हैं, जो उड़ान भरने के लिये तैयार है और अगर एक सक्षम ईको-सिस्टम तैयार कर लिया जाये, तो उनकी प्रतिभा को कामयाबी के साथ तराशा जा सकता है।” उन्होंने शैक्षिक संस्थानों से अपील की कि वे इस दिशा में पहल करें। उन्होंने विश्वविद्यालयों को सुझाव दिया कि उन्हें कबड्डी और खो-खो जैसे पारंपरिक भारतीय खेलों में नई जान फूंकनी चाहिये तथा उन्हें बढ़ावा देना चाहिये।
नये उभरते और आकांक्षाओं से भरपूर भारत की रचना करने के लिये बेहतर शिक्षा के महत्त्व को रेखांकित करते हुये उपराष्ट्रपति ने आह्वान किया कि हमारे विश्वविद्यालयों और कॉलेजों से निकलने वाले छात्रों के लिये रोजगार के अवसर बढ़ाये जायें। इस सिलसिले में उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अकादमिक जगत और उद्योग के बीच संपर्क बनाया जाये तथा उद्योग के लिये आवश्यक कौशल विकास पर ध्यान दिया जाये।
तेजी से बदलती दुनिया में भावनात्मक और सामाजिक कुशलता की जरूरत पर बल देते हुये श्री नायडू ने छात्रों से कहा कि वे जीवन के प्रति सकारात्मक नजरिया विकसित करें तथा राष्ट्र-निर्माण जैसे बड़े उद्देश्य में अपना योगदान दें। उन्होंने कहा, “लोगों, समाज और बड़े रूप में पूरे राष्ट्र की भलाई के लिये लगातार अपनी शिक्षा का उपयोग करते रहें।”
तक्षशिला और नालन्दा जैसे संस्थानों के समृद्ध और शानदार शैक्षिक इतिहास का उल्लेख करते हुये उन्होंने भारत के गौरवशाली अतीत को याद किया और कहा कि भारत को फिर से विश्वगुरु बनाया जाना चाहिये। उन्होंने कहा, “सरकार के प्रयासों को बढ़ाने में निजी क्षेत्र की भूमिका उस समय और भी महत्त्वपूर्ण हो जाती है, जब शैक्षिक रूप से शक्तिसम्पन्न भारत का सपना पूरा करने का प्रश्न आता है।”
प्रौद्योगिकीय प्रगति को पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव को कम करने की दिशा में लगाने पर जोर देते हुये उपराष्ट्रपति ने कहा कि विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी को आम आदमी की रोज की समस्याओं का समाधान निकालना चाहिये और उसके जीवन स्तर में सुधार लाना चाहिये।
उपराष्ट्रपति ने एसआरएम ग्रुप की सराहना की कि उसने कोविड-19 के सम्बंध में क्लिनिकल परीक्षण में सरकार का सहयोग किया तथा महामारी से पीड़ित आबादी को सस्ती आवश्यक स्वास्थ्य सुविधायें प्रदान करने में मदद की। एसआरएम ग्रुप के संस्थापक डॉ. टीआर पारीवेन्धर के विजन और नेतृत्व की प्रशंसा करते हुये उपराष्ट्रपति ने कहा कि इस ग्रुप का सारा ध्यान बेहतर शिक्षा पर है, जो आत्मनिर्भर भारत की स्थापना के सम्बंध में भारत सरकार के विजन के अनुरूप है।
उन्होंने कहा कि नोबेल पुरस्कार प्राप्त डॉ. सीवी रमन, पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम और डॉ. आर वेंकटरमण जैसे प्रसिद्ध वैज्ञानिक तथा राजनेता तिरुचिरापल्ली में पढ़े हैं। इसके हवाले से श्री नायडू ने उम्मीद व्यक्त की तिरुचिरापल्ली में एसआरएम का नया परिसर इस नगर के रत्नजड़ित मुकुट में नये नगीने जड़ेगा। उन्होंने संस्थान को सुझाव दिया कि उसे कौशल विकास को प्राथमिकता देनी चाहिये, ताकि राष्ट्रीय और स्थानीय तकाजों को पूरा किया जा सके।
शिक्षा में ग्रामीण-शहरी अंतराल को भरने का आह्वान करते हुये उन्होंने जोर देकर कहा कि छात्राधारित शिक्षण और शिक्षा प्रणाली के लिये सामाजिक समर्थन की जरूरत है। उन्होंने कहा, “मैं आपसे आग्रह करूंगा कि आप सिखाने की प्रक्रिया में नयापन लायें और आजादी तथा रचनात्मकता पर जोर दें। छात्रों में स्वयंसेवी और सामुदायिक सेवा का भाव पैदा करना भी महत्त्वपूर्ण है।”