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क्या होंगी किसान और केंद्र सरकार की आगे की रणनीति

जैसा कि आप सभी जानते हैं, केंद्र सरकार के कृषि कानूनों( farm laws ) के खिलाफ पंजाब और हरियाणा के किसान 26 नवंबर 2020 से धरना प्रदर्शन कर रहे हैं दिल्ली चलो मार्च निकाल रहे हैं । इस मार्च को रोकने के लिए हरियाणा और पंजाब सरकार ने अपने-अपने बॉर्डर सील कर दिए । इसके अलावा भारी पुलिस फोर्स भी बॉर्डर पर तैनात कर दी गई है। वही 8 दिसंबर 2020 को किसानों ने भारत बंद का ऐलान कर दिया था और उसमें किसानों ने दिल्ली के सभी बार्डर को सील कर दिया था। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, सरकार का कहना है कि जो कानून बनाया गया है वह किसानों के हित में है। आपको बता दें कि सरकार जिन कृषि कानूनों को किसानों के लिए हितकारी बता रही है, आखिर किसान उसके विरोध में सड़कों पर क्यों उतरे हुए आइए समझते हैं इस आंदोलन की जड़ क्या है ।

किसान आंदोलन

1. किसानों को सबसे बड़ा डर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP- Minimum Support Price) खत्म होने का है । इस बिल के जरिए सरकार ने कृषि उपज मंडी समिति (APMC-Agricultural produce market committee) यानी मंडी से बाहर भी कृषि कारोबार का रास्ता खोल दिया है।आपको बता दें कि मंडी से बाहर भी ट्रेड एरिया घोषित हो गया है।मंडी के अंदर लाइसेंसी ट्रेडर किसान से उसकी उपज एमएसपी पर लेते हैं, लेकिन बाहर कारोबार करने वालों के लिए एमएसपी को बेंचमार्क नहीं बनाया गया है। इसलिए मंडी से बाहर एमएसपी मिलने की कोई गारंटी नहीं है।

2. सरकार ने बिल में मंडी को खत्म करने की बात कहीं पर भी नहीं लिखी, लेकिन इसका प्रभाव मंडियों को तबाह कर सकता है ।इसका अंदाजा लगाते हुए किसान को डर लग रहा है ।इसलिए उनका मानना है कि मंडिया बचेगी तभी तो वह एमएसपी पर अपने उपज बेच पाएंगे ।

आखिर क्यों हो रहा है किसानों को भ्रम और शंका

केंद्र सरकार जो बात एक्ट में नहीं लिख रही है उसका ही वादा बाहर कर रही है । इसलिए किसानों में भ्रम फैल रहा है । सरकार अपने ऑफिशियल बयान में एमएसपी जारी रखने और मंडियां बंद न होने का वादा कर रही है, पार्टी फोरम पर भी यही कह रही है, लेकिन यही बात एक्ट में नहीं लिख रही । इसलिए शंका और भ्रम है । किसानों को लगता है कि सरकार का कोई भी बयान एग्रीकल्चर एक्ट में एमएसपी की गारंटी देने की बराबरी नहीं कर सकता। क्योंकि एक्ट की वादाखिलाफी पर सरकार को अदालत में खड़ा किया जा सकता है, जबकि पार्टी फोरम और बयानों का कोई कानूनी आधार नहीं है । हालांकि, सरकार सिरे से किसानों की इन आशंकाओं को खारिज कर रही है।

उच्चतम न्यायालय (Supreme Court)का सुझाव

इस सप्ताह के शुरू में Supreme Court ने बोला कि वह गतिरोध के समाधान के लिए कृषि विशेषज्ञों और किसान यूनियनों का एक ‘‘निष्पक्ष और स्वतंत्र’’ समिति गठित करने पर विचार कर रहा है । किसान नेता शिवकुमार कक्का ने कहा रणनीति तय करने के लिए यूनियनों के बीच मन में चर्चा चल रही है। उन्होंने कहा कि वह इस मामले पर कानूनी राय भी ले रहे हैं। कक्का ने कहा हमारी बैठक अगले कदम के लिए हो रही हैं हम उम्मीद करते हैं कि अगले दो-तीन दिनों में हमारे समक्ष यह स्पष्ट हो जाएगा कि हमें अदालत द्वारा सुझाई गई समिति की आवश्यकता होगी या नहीं ।

किसान आंदोलन में कितने किसानों की हुई मौत

इस बीच यह बात भी सामने आई है कि ऑल इंडिया किसान सभा ( ए आई के एस) शनिवार को दावा करते हुए कहा कि 26 नवंबर से जारी आंदोलन में लेने वाले 33 किसानों की मौत दुर्घटनाओं, बीमारी और ठंड के मौसम की वजह से हुई है ।

ए आई के एस के अनुसार जान गवाने वाले किसानों को श्रद्धांजलि देने के लिए रविवार को देश के विभिन्न हिस्सों में श्रद्धांजलि दिवस मनाया जाएगा ।

जब तक मांगे पूरी नहीं तब तक विरोध प्रदर्शन खत्म नहीं ।

नेता बलबीर सिंह ने कहा कि किसान तब तक अपना विरोध प्रदर्शन समाप्त नहीं करेंगे जब तक उनकी मांगे पूरी नहीं हो जाती। उन्होंने यहां तक भी कहा कि हम 1 लंबी लड़ाई के लिए बिल्कुल तैयार है। हम अपने अधिकारों के लिए यहां हैं और जब तक रहेंगे तब तक हमें हमारा अधिकार नहीं मिल जाएगा । अदालत के आदेश के बाद ना रूकता करने की प्रक्रिया में है। नई कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग को लेकर हजारों किसान पिछले 25 दिनों से दिल्ली सीमा पर कई स्थानों पर डटे हुए हैं ।

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