गेहूं का एक्सपोर्ट बैन क्यों हुआ?
भारत सरकार ने 13 मई को गेहूं को विदेश में बेचने यानी एक्सपोर्ट करने पर रोक लगा दी. G 7 यानी दुनिया के सात सबसे बड़े देशों के ग्रुप ने भारत की निंदा कर डाली. इससे दुनिया में गेहूं के दाम बढ़ेंगे, क़िल्लत होगी, भुखमरी का डर है. स्वाभाविक रूप से भारत को दुनिया से ज़्यादा अपनी चिंता है. एक्सपोर्ट बैन से पहले आटे का भाव क़रीब ₹33 प्रति किलो था. साल भर में आटे के दाम चार रुपये प्रति किलो बढ़े हैं. बढ़ती महंगाई सरकारों को विदा करती रही है, इसलिए सरकार ने दुनिया की परवाह ना करते हुए एक्सपोर्ट बैन कर दिया.
देश के बाज़ारों में महंगाई रोकने के लिए एक्सपोर्ट बैन कर देना सरकारों का पुराना हथियार है. विदेशी बाज़ारों के बजाय गेहूं भारत के बाज़ार में बिकेगा तो उम्मीद है कि दाम कम होंगे या कम से कम और नहीं भागेंगे. इस बार फ़ज़ीहत होने के दो कारण रहें.
पहला कारण है एक्सपोर्ट बैन करने से पहले हमारी सरकार दुनिया का पेट भरने का डंका बजा रही थी और दूसरा कारण है MSP यानी Minimum Support Price.आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि एक्सपोर्ट बैन करने से पहले किसान को प्रति किलो ₹21 से ₹25 मिल रहे थे जबकि MSP ₹20.15 है. MSP वो भाव होता है जो सरकार तय करती है. इकनॉमिक टाइम्स के मुताबिक़ बैन के बाद भी भाव MSP से 5 परसेंट ज़्यादा चल रहे हैं.
After India banned wheat exports, G7 nations condemned India's decision as German agriculture minister Cem Ozdemir said it "would worsen the crisis." #wheatexportban #WheatCrisis https://t.co/fg159IHtcr
— IndiaToday (@IndiaToday) May 14, 2022
अब क्रोनोलॉजी समझिए पहले डंका बजाने की फिर MSP की
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 11 अप्रैल को अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन से मिले तो उन्होंने अगले दिन गुजरात में वीडियो लिंक से सभा को संबोधित करते हुए बताया।
#BREAKING | PM Modi to hold a virtual meeting with US President Joe Biden on April 11, to review ongoing bilateral cooperation
Tune in to watch: https://t.co/dX2UKUKPXC pic.twitter.com/bGaG0sgzEs
— Republic (@republic) April 10, 2022
दुनिया के सामने अब नया संकट है, खाद्यान्न भंडार ख़ाली हो रहे हैं. मैं अमेरिका के राष्ट्रपति से बात कर रहा था और उन्होंने भी ये मुद्दा उठाया. मैंने सुझाव दिया कि WTO इजाज़त दे दें तो भारत कल से दुनिया को खाद्यान्न सप्लाई करने को तैयार है. हमारे पास अपने लोगों के लिए पर्याप्त खाना है हमारे किसानों ने दुनिया का पेट भरने का इंतज़ाम कर लिया है. हालाँकि हमें दुनिया के क़ानून से चलना पड़ेगा, मुझे पता नहीं है कि WTO कब परमिशन देगा और कब हम दुनिया को सप्लाई कर सकेंगे
US President Joe Biden will meet virtually with Prime Minister Narendra Modi of India on Monday, April 11 to further deepen ties between our governments, economies, and our people, reads the statement of White House Press Secretary Jen Psaki
(File pic) pic.twitter.com/ap6keAxEvi
— ANI (@ANI) April 10, 2022
फिर तीन मई को जर्मनी में प्रधानमंत्री ने यही बात दोहरायी
India is going global! pic.twitter.com/kuqK4NVgSp
— Narendra Modi (@narendramodi) May 3, 2022
ज़मीनी हक़ीक़त से दूर सरकार एक्सपोर्ट के नए नए टार्गेट सेट करने में लगी थी. 12 मई को कॉमर्स मंत्रालय ने प्रेस नोट निकाल कर कहा कि इस साल एक करोड़ टन गेहूं एक्सपोर्ट करने का लक्ष्य है. पिछले साल 70 लाख टन गेहूं का एक्सपोर्ट किया गया था. सरकार एक्सपोर्ट की संभावना तलाशने के लिए नौ देशों में प्रतिनिधि मंडल भेजने वाली थी
इन दावों के बीच 13 मई को सरकार ने यू टर्न लिया और गेहूं का एक्सपोर्ट बैन कर दिया. सरकार ने कहा कि बढ़ती महंगाई और फ़ूड सिक्योरिटी के लिए ये फ़ैसला लिया गया. अब सवाल उठना स्वाभाविक है कि एक महीने पहले तक भारत अपने साथ साथ दुनिया का पेट भरने के लिए भी तैयार था तो फिर क्या हुआ कि फ़ैसला पलटना पड़ा. दरअसल मार्च-अप्रैल में गर्मी ने कुछ खेल बिगाड़ा बाक़ी कसर सरकार के आकलन में गलती ने पूरी कर दी.
सरकार मान चल रही थी कि गेहूं का उत्पादन पिछले साल की तरह ही होगा. मार्च अप्रैल की गर्मी ने ये गणित बिगाड़ दिया.सरकार का अनुमान था कि 11 करोड़ टन गेहूं का उत्पादन होगा लेकिन अब अनुमान है कि 10 करोड़ टन से थोड़ा ज़्यादा होगा( 1टन मतलब 1000 किलो). उत्पादन कम हुआ तो सरकार की ख़रीद भी कम हुई. अनुमान है कि सरकार इस साल किसानों से क़रीब दो करोड़ टन गेहूं ही ख़रीद पाएगी. पिछले साल चार करोड़ टन से ज़्यादा गेहूं ख़रीदा गया था. इसका कारण ये भी रहा कि किसानों को खुले बाज़ार में MSP से ज़्यादा दाम मिल रहे थे. व्यापारी एक्सपोर्ट के लिए ज़्यादा दाम पर ख़रीद रहे थे.
WHEAT PRICES FIGURES BEFORE & AFTER #Wheatexportban
PRICES FALL IN MOST OF MARKETS@JainPaharia @RussianGrainTra @dhaval_meghpara @Hiten_Kataria @apoorvaagrico @BeingHumanShan @maheshvari @ElenaNeroba @ACOMRB @bentleystweet @CheshtaE @Manisha3005 @BinodSgr @sandeepbansal28 pic.twitter.com/8ENfY7qmmp— IGrain India Rahul Chauhan (@IGrain_India) May 19, 2022
समस्या की जड़ में रुस और यूक्रेन युद्ध है. ये दोनों देश मिलकर दुनिया का 28% गेहूं का उत्पादन करते हैं. ये सप्लाई दुनिया के बाज़ार में कम हुई तो भाव बढ़ने लगे. भारत को संकट में संभावना दिखाई दीं. एक्सपोर्ट पर ज़ोर लगाया गया. पहले एक्सपोर्ट हो नहीं पाता था क्योंकि सरकार जितना MSP देती थी उससे कम दाम दुनिया के बाज़ार में था. इस बार स्थिति पलट गई है. सरकार को दुनिया का पेट भरने के दावे से मुकरना पड़ा. चिंता होने लगी कि अपने गोदाम नहीं भरेंगे तो आगे चलकर महंगाई बढ़ेगी ही, अनाज की कमी भी हो सकती है. ये चिंता ग़लत नहीं है. क़रीब 15 साल यूपीए सरकार में ये हो चुका है कि पहले गेहूं और चीनी का एक्सपोर्ट हुआ और फिर ज़्यादा दाम पर इंपोर्ट।
महंगाई की चिंता में सरकार किसान को भूल गई. पाँच साल पहले सरकार ने वादा किया था कि 2022 तक किसानों की आय दो गुना हो जाएगी. सरकार ने पिछले साल 19 नवंबर को तीनों किसान क़ानून वापस ले लिए थे, उन क़ानूनों का भाव समझिए. पहला क़ानून किसानों को APMC यानी कृषि उपज मंडी के बाहर प्रायवेट मंडी में फसल बेचने की आज़ादी दे रहा था जबकि दूसरे क़ानून में किसानों को पूर्व निर्धारित क़ीमत पर कंपनियों, व्यापारियों को बेचने की अनुमति दे रहा था. सरकार की उम्मीद थी कि इससे किसानों को उनकी फसलों का ज़्यादा दाम मिलेगा.
अब गेहूं के साथ क्या हो रहा है. किसानों को MSP से ज़्यादा दाम बाज़ार में मिल रहा है. वो सरकार को नहीं बेच रहा. सरकार की ख़रीद कम रही है. एक्सपर्ट्स कह रहे हैं कि सरकार को एक्सपोर्ट बैन करने के बजाय प्रति किलो दो से ढाई रुपये बोनस किसान को दे देना चाहिए था. सरकार ने एक्सपोर्ट बैन करने का रास्ता चुना है. किसान घाटे में रहेंगे और महंगाई कम होगी इसकी गारंटी नहीं है. हो सकता है माया मिली ना राम.
“लेखिका – वंदना सिंह”