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दिल्ली में इस साल भी दीवाली रहेगी सुनी, कोर्ट ने कहा- नहीं बदलेंगे फैसला

दिल्लीवासियों को इस वर्ष भी दीवाली के अवसर पर पटाखों से दूर रहना पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों पर लगे बैन को हटाने से मना कर दिया है। दरअसल, भाजपा सांसद मनोज तिवारी ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर किया था। याचिका में पटाखों पर लगा बैन को संस्कृति के खिलाफ बताया था। लेकिन सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ कर दिया है कि पटाखों पर लगा बैन नहीं हटेगा। बता दें, पिछले कई वर्षों से प्रदूषण में बढ़ावा ना हो, इसलिए कोर्ट के द्वारा दिल्ली में पटाखों पर बैन लगा रखा है।

दिल्ली से सांसद मनोज तिवारी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके कोर्ट के उस फैसले को चुनौती दिया था, जिसमें अगले साल 2 जनवरी तक दिल्ली में पटाखों पर बैन लगा हुआ है। मनोज तिवारी ने इस बैन को संस्कृति के खिलाफ बताया है। हालांकि एम आर शाह की बेंच ने सुनवाई के बाद यह स्पष्ट कर दिया है कि वे पटाखे पर लगे प्रतिबंध को वापस नहीं लेने वाले हैं। फैसले में कोर्ट ने कहा कि दिल्ली एनसीआर को लेकर हमारा फैसला एकदम स्पष्ट है। क्या आपने प्रदूषण की स्थिति नहीं देखी है? कोर्ट ने कहा पराली के वजह से पहले ही प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है। आप खुद एनसीआर में रहते हैं, फिर बढ़े हुए प्रदूषण को और क्यों बढ़ाना चाहते हैं? कोर्ट ने साफ कहा कि हम इस बैन को नहीं हटा सकते हैं। साथ ही न्यायाधीश ने कहा कि इस मुद्दे को लेकर और भी याचिकाएं हैं, आपका याचिका का भी उन सभी के साथ सुनवाई हो जाएगा।

दिल्ली में दीवाली आने से पहले ही प्रदूषण का स्तर बढ़ने लगता है। इसी को देखते हुए कोर्ट ने पिछले कई सालों से लगातार प्रदूषण को मद्देनजर रखते हुए दीवाली में पटाखों पर बैन किया गया है। हालांकि बढ़ते प्रदूषण का वजह सिर्फ पटाख़े नहीं हैं बल्कि किसानों के द्वारा पराली को जलाना भी बड़ी समस्या है। पराली के समस्या को लेकर राज्य सरकार लगातार एक्शन प्लान तैयार करने में लगी हुई है। पराली को गलाने के लिए बायो डिकॉम्पोज़र का इस्तेमाल करने की तैयारी किया जा रहा है। इसके अलावा भी वायु परीक्षण, खुले स्थान पर कूड़ा जलाना सहित अन्य चीज़ों पर ध्यान दिया जा रहा है। हालांकि कोर्ट के निर्णय के बाद आम लोगों की राय भी बटी हुई है। कुछ लोग पर्यावरण का हवाला देकर पटाखों पर बैन को सही मान रहे हैं तो वहीं कुछ लोग पटाखों पर बैन का विरोध कर रहे हैं और पटाखों को संस्कृति से जोड़ रहे हैं।