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शहीद दिवस स्पेशल: इस स्कूल में ‘बापू’ को रोज याद किया जाता है

आज 30 जनवरी यानी शहीद दिवस, सोचा याद दिलाता चलूं, क्योंकि हम भारतीय भुलक्क्ड़ बहुत होते है। हर छोटी-बड़ी बातों को भूलने की आदत होती है। मैं अक्सर बैठे-बैंठे सोचता हूँ, वह कैसा पल रहा होगा, वह दिन कितने वीरान रहें होंगे, वह रातें कितनी खामोश रही होगी जिन हाथों ने बन्दूक चलाएं होंगे, उन हथेलियों का क्या हुआ होगा। ऐसे ही अनेको सवाल लिए आँखे शहीद दिवस के दिन बापू की तस्वीरों को निहारती है और आँखें चुप-चुप रोती रहती है। फिर भुलने की बीमारी से निजात पाने की कोशिश में लग जाता हूँ।

बता दें कि, भारत से 19वीं शताब्दी के अंत में मलेशिया जा बसे ए वीरास्वामी और ए एम एस सुपिहा पिल्ले ने एक स्कूल के लिए अपनी 2 एकड़ जमीन दान में दी। वीरास्वामी के बेटे सांबनाथन और पिल्ले के बेटे पेरीस्वामी ने स्कूल के लिए फंड जुटाने की जिम्मेदारी उठाई। उन्होंने इमारत बनाने और मशूहर वास्तुविद बी एम इवर्सन की सेवाएं लेने के लिए 25-25 हजार डॉलर दान में दिए। उनके इस कदम से प्रेरित होकर नारियल बगान में काम करने वाले मजदूरों ने भी कुल 7,000 डॉलर की रकम जुटाने में मदद की।

कुआला कांगसर के तत्कालीन ब्रिटिश जिलाधिकारी एम जे मैकेंजी स्मिथ ने तब इस स्कूल को भारतीयों की उद्यमशीलता और व्यक्तिगत कुर्बानी का नतीजा बताया था। आज इस स्कूल में करीब 600 बच्चे पढ़ते हैं। रोजाना सुबह एक मिनट इस स्कूल में बापू को याद किया जाता है। बापू की शिक्षा का यह स्कूल जीता-जागता मिसाल है।

Sachin Sarthak

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