नरेंद्र मोदी सरकार जम्मू कश्मीर में 26 साल बाद परिसीमन करा रही, जानिए क्या बदलेगा इससे
जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दलों के 14 नेताओं से मुलाकात के बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने नए बने केंद्र शासित प्रदेश में परिसीमन को जरूरी बताया है। उन्होंने ट्वीट कर कहा, ‘हमारी प्राथमिकता यह है कि जम्मू-कश्मीर में जमीनी तौर पर लोकतंत्र को मजबूत किया जाए। इसके लिए परिसीमन तेजी से कराए जाने की जरूरत है ताकि चुनाव हो सकें और जम्मू-कश्मीर को चुनी हुई सरकार मिल सके। इससे विकास में भी तेजी आ सकेगी।’ इस मीटिंग से पहले ही इस बात के कयास लगाए जा रहे थे कि मोदी सरकार की ओर से परिसीमन का एजेंडा रखा जा सकता है। बता दें कि परिसीमन आयोग का सरकार की ओर से पहले ही गठन किया जा चुका है और उसने नए बने केंद्र शासित प्रदेश का सर्वे शुरू कर दिया है। आइए जानते हैं, क्या है परिसीमन आयोग का काम और इससे क्या होंगे बदलाव…
Our priority is to strengthen grassroots democracy in J&K. Delimitation has to happen at a quick pace so that polls can happen and J&K gets an elected Government that gives strength to J&K’s development trajectory. pic.twitter.com/AEyVGQ1NGy
— Narendra Modi (@narendramodi) June 24, 2021
जनसंख्या के आधार पर समय-समय पर विधानसभा और लोकसभा सीटों का परिसीमन किया जाता है। इसके तहत विधानसभा और लोकसभा सीटों के क्षेत्र का पुनर्गठन होता है। आबादी और क्षेत्रफल के अनुसार यह होता है। यह काम परिसीमन आयोग की ओर से किया जाता है और उसके फैसले को किसी कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती। इसे जनगणना के नवीनतम आंकड़ों के आधार पर किया जाता है ताकि सभी सीटों का बंटावारा व्यवहारिक हो। सीटों के क्षेत्रफल के अलावा इसके चलते कई बार राज्य में विधानसभा या लोकसभा की सीटों में भी बदलाव हो जाता है।
जम्मू-कश्मीर में कब हुआ था आखिरी बार परिसीमन
जम्मू-कश्मीर की लोकसभा सीटों का परिसीमन तो पूरे देश के साथ ही होता रहा है, लेकिन विधानसभा सीटों का परिसीमन आखिरी बार 1995 में हुआ था। इसकी वजह यह थी कि आर्टिकल 370 लागू होने के चलते प्रदेश की विधानसभा का परिसीमन राज्य के संविधान के तहत तय होता था। वहीं लोकसभा सीटों के परिसीमन के लिए भारतीय संविधान ही लागू होता था। जम्मू-कश्मीर में आजादी के बाद से अब तक तीन बार 1963, 1973 और 1995 में ही विधानसभा सीटों का परिसीमन हुआ था। आखिरी बार 1995 में जब परिसीमन हुआ था, तब राज्य में गवर्नर रूल था और 1981 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर किया गया था। राज्य में 1991 में जनगणना ही नहीं हुई थी और फिर 2001 की जनगणना के बाद कोई परिसीमन नहीं हुआ। यहां तक विधानसभा से एक प्रस्ताव को मंजूरी दी गई थी, जिसमें परिसीमन पर 2026 तक के लिए रोक की बात थी।