प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्य प्रदेश के उज्जैन में श्री महाकाल लोक के पहले फेज का शुभारंभ किया है। इससे पहले प्रधानमंत्री ने महाकाल मंदिर जाकर वहाँ पूरे विधि विधान से पूजा किया है। प्रधानमंत्री ने एक जनसभा को भी संबोधित किया है। इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि जब भारत का भौगोलिक स्वरूप आज से अलग रहा होगा तब से ये माना जाता है कि उज्जैन भारत के केंद्र में हैं। बता दें, इस दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया भी मौजदू थे।
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे, महादेवाय धीमहि, तन्नो रूद्र: प्रचोदयात्।।#ShriMahakalLok pic.twitter.com/ycMbKRZQoD
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाकाल के वैभव को बताते हुए कहा, “जय महाकाल, उज्जैन की ये ऊर्जा, ये उत्साह! अवंतिका की ये आभा, ये अद्भुतता, ये आनंद! महाकाल की ये महिमा, ये महात्म्या! ‘महाकाल लोक’ में लौकिक कुछ भी नहीं है। शंकर के सानिध्य में साधारण कुछ भी नहीं है। सब कुछ अलौकिक है, असाधारण है। अविस्मरणीय है, अविश्वसनीय है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “हमारी तपस्या और आस्था से जब महाकाल प्रसन्न होते हैं तो उनके आशीर्वाद से ही ऐसे ही भव्य स्वरुप का निर्माण होता है।और महाकाल का जब आशीर्वाद मिलता है तो काल की रेखाएं मिट जाती हैं।”
हमारी तपस्या और आस्था से जब महाकाल प्रसन्न होते हैं तो उनके आशीर्वाद से ही ऐसे ही भव्य स्वरुप का निर्माण होता है।
और महाकाल का जब आशीर्वाद मिलता है तो काल की रेखाएं मिट जाती हैं।
– पीएम @narendramodi
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनसभा को संबोधित करते हुए कहा, “उज्जैन के छण-छण में, पल-पल में इतिहास सिमटा हुआ है। कण-कण में आध्यात्म समाया हुआ है और कोने-कोने में ईश्वरीय ऊर्जा संचारित हो रही है। प्रधानमंत्री ने कहा, “ज्योतिषीय गणनाओं में उज्जैन न केवल भारत का केंद्र रहा है बल्कि ये भारत की आत्मा का भी केंद्र रहा है।” प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, “किसी राष्ट्र का सांस्कृतिक वैभव इतना विशाल तभी होता है, जब उसकी सफलता का परचम, विश्व पटल पर लहरा रहा होता है। सफलता के शिखर तक पहुँचने के लिए ये जरूरी है कि राष्ट्र अपने सांस्कृतिक उत्कर्ष को छुए, अपनी पहचान के साथ गौरव से सर उठाकर खड़ा हो।”
किसी राष्ट्र का सांस्कृतिक वैभव इतना विशाल तभी होता है, जब उसकी सफलता का परचम, विश्व पटल पर लहरा रहा होता है।
सफलता के शिखर तक पहुँचने के लिए ये जरूरी है कि राष्ट्र अपने सांस्कृतिक उत्कर्ष को छुए, अपनी पहचान के साथ गौरव से सर उठाकर खड़ा हो।
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