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तमिलनाडु: द्रविड़ राजनीति में भाजपा जमा पाएगी पैर?

तमिलनाडु उन राज्यों में शामिल है, जहाँ कुछ महीनों में चुनाव होने वाले हैं। लेकिन, इस बार तमिलनाडु का चुनाव पूरी तरीके से अलग नज़र आ रहा है। इस चुनाव में न तो लम्बे समय तक सत्ता में काबिज रहे करूणानिधि हैं, न ही उनकी धुर – विरोधी जयललिता। दोनों का देहांत हो चुका है। ऐसे में ये चुनाव तमिलनाडु राजनीति के लिए बहुत ख़ास है।

पुराने विरोधियों के बीच ही मुकाबला

तमिलनाडु में जयललिता और करूणानिधि के अनुपस्थिति के बाद भी चुनाव पुराने विरोधी द्रमुक और अन्नाद्रमुक के बीच ही होगा। दोनों पार्टियां इस बार पुराने गठबंधन के साथ चुनाव मैदान में हैं। अकेले सत्ता पाने की कोशिश कर रहे भाजपा ने नब्ज टटोलकर अन्नाद्रमुक के साथ हाथ मिला लिया है, वहीँ कांग्रेस पहले से ही द्रमुक के साथ है।

कमजोर हो रही अन्नाद्रमुक

जयललिता की मौत के बाद लगातार अन्नाद्रमुक कमजोर हुई है। पार्टी में कई धरे बन गए हैं। मुख्यमंत्री ओ पलानीसामी पार्टी में अपनी पकड़ अभी तक मजबूत नहीं कर पाए हैं। 2019 में द्रमुक ने अन्नाद्रमुक का सुपरा साफ कर दिया था।

चुनाव में सत्ता बदलने की रही परंपरा

तमिलनाडु में हर साल में सरकार बदलने की परंपरा रही है। हालांकि, बीते चुनाव में जयललिता की अगुआई में अन्नाद्रमुक ने इस मिथक को तोड़ दिया था। इससे पहले कई चुनावों में राज्य के मतदाता की एक बार करुणानिधि तो एक बार जयललिता पसंद बनते रहे थे।

भाजपा पार्टी ने साल 2014 का लोकसभा चुनाव जीतने के बाद इस दिशा में कई कोशिशें की। हालांकि द्रविड़ राजनीति के इस गढ़ में पार्टी को कुछ बड़ा हाथ नहीं लगा।

साल 2014 में मोदी लहर में 5.5 फीसदी वोट लाने वाली भाजपा 2019 में करीब दो फीसदी वोट गंवा बैठी। बहरहाल पार्टी की निगाहें इस चुनाव के जरिए अगला लोकसभा और विधानसभा चुनाव को साधने की है।


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