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सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए रजिस्ट्रेशन स्कीम के स्टेटस के बारे में केंद्र से मांगा जवाब

सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना काल में कई मामलों पर स्वत: संज्ञान लिया है। इस कड़ी में एक और मामला जुड़ गया है। आज सुप्रीम कोर्ट ने लॉकडाउन के कारण प्रवासी मजदूरों को हो रही समस्याओं पर स्वत: संज्ञान लेकर सुनवाई की। कोर्ट ने सोमवार (24 मई) को सुनवाई के दौरान कोविड-19 महामारी के दौरान देश भर में प्रवासी मजदूरों के पंजीकरण की धीमी प्रक्रिया पर नाराजगी जाहिर करते हुए वर्ष 2018 में लॉन्च हुई लेबर रजिस्ट्रेशन स्कीम के स्टेटस के बारे में केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। दरअसल,सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना लॉकडाउन के समय पिछले साल यानी 2020 में सभी प्रवासी मजदूरों का रजिस्ट्रेशन करने का फैसला सुनाया था।

सुप्रीम कोर्ट ने ने प्रवासी श्रमिकों की दुर्दशा को ध्यान में रखते हुए सोमवार को कहा कि उनके पंजीकरण की प्रक्रिया बेहद धीमी हो रही है। सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर केंद्र और राज्यों को निर्देश जारी करेगा। हालांकि, जस्टिस अशोक भूषण और एम आर शाह ने कहा कि वह राहत पैकेज के तौर पर रुपये देना एक नीतिगत निर्णय है, इसलिए राहत पैकेज देने का आदेश नहीं देंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “केंद्र और राज्यों को प्रवासी कामगारों और असंगठित क्षेत्रों में काम करने वालों के पंजीकरण में तेजी लानी चाहिए। न सिर्फ प्रवासी मजदूर ही पंजीकरण के लिए सरकार से संपर्क करें बल्कि सरकारों को भी उन्हें पंजीकृत कराने के लिए प्रवासियों से संपर्क करना चाहिए।”

सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा, “जब प्रवासी मजदूरों का पंजीकरण हो जाए तो सरकारें उन प्रवासी कामगारों को लाभ दे सकती हैं, जिन्होंने महामारी के दौरान रोजगार खो दिया है।” पीठ ने कहा, “यह एक मुश्किल काम है, लेकिन इसे हासिल करना होगा।”

सुप्रीम कोर्ट ने लॉकडाउन के बाद इन प्रवासी कामगारों को रोजगार के लिए योजनाओं को निर्दिष्ट करने का जिम्मा भी केंद्र और राज्यों को सौंपा है। इसके अतिरिक्त, केंद्र और राज्य सरकार को उन सभी कल्याणकारी योजनाओं, जिनका लाभ प्रवासी श्रमिक उठा सकते हैं, का विवरण भी मांगा गया है।


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