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आस्था का सैलाब है छठ महापर्व!

आज ऑफिस जाने के दौरान नोएडा की गलियों से गुजरा तो कुछ घरों में लोक आस्था का महापर्व छठ के गाने ( हे दीनानाथ दिहि दर्शनमा, उग हो सुरुज देव, हे छठी मैया) सुनाई दे रहे थे। मां छठी के गाने सुनते ही न जानें क्यों शरीर का रोम-रोम पुल्कित हो गया। गानें सुनकर ही इस महापर्व की दिव्य छटा का अहसास खुद-व-खुद होने लगा। वैसे आज भी दिल्ली समेत दूसरे राज्यों के बहुत सारे लोगों के बीच छठ महापर्व जिज्ञासा का विषय है।

अगर आप भी उन लोगों में शामिल हैं, जो इस महापर्व को जानने को जिज्ञासू हैं तो बता दूं कि यह इस ब्रह्मांड का शायद एकमात्र पर्व है जो समाज में समरसता, प्रकृति से प्रेम, आस्था का सैलाब और मन की मुराद पूरी करने के लिए जाना जाता है। एक सवाल आपके मन में उठ सकता है कि आखिर क्यों छठ पर्व में ऊर्जा के सबसे बड़े स्रोत सूर्य (भास्कर) की पूजा की जाती है। वह भी अस्ताचलगामी (डूबते) और उदीयमान (उगते) सूर्य दोनों की। इसके पीछे आस्था तो हैं ही लेकिन सामाजिक समरसता का भी बहुत बड़ा उदाहरण है। यह पर्व संदेश देता है कि हम सिर्फ उगने वाले को नहीं बल्कि डूबने वाले को भी उतना ही सम्मान देते हैं। शायद, दूसरे किसी पर्व में हम जिनको भगवान मानते हैं वो सामने नहीं होते लेकिन सूर्य साक्षात होते हैं। इसलिए इसका पर्व का महत्व और प्रभाव इतना व्यापक है।

जात-पात से ऊपर इस पर्व को हिन्दु परिवार जितने उत्साह से मानते हैं, उतने ही मुस्लिम भी। एक और खूबसूरती है कि स्त्री और पुरुष भी समान उत्साह से इस पर्व को मनाते हैं। चार दिन तक चलने वाले इस पर्व में शरीर और मन को पूरी तरह साधना पड़ता है,इसलिए इस पर्व को हठयोग भी कहा जाता है। स्वच्छता को लेकर छठ पूजा सदियों से संदेश देता आ रहा है। इस मौके पर नदियां,तालाब,जलाशयों के किनारे पूजा की जाती है जो सफाई की प्रेरणा देती है।

यह पर्व इंसान को प्रकृति से सीधे जोड़ने का काम भी करता है। इस पर्व में इस्तेमाल होने वाली हर चीज हमें सीधे प्रकृति से मिलती है। चाहे वह केला, नारियल, मूली, ठेकुआ, सेब, गन्ना, नींबू आदि। प्रसाद चढ़ाने के लिए भी बांस से बने दऊरा और सुप का ही इस्तेमाल होता है। हम इसमें हाथी भी पूजते हैं और सूर्य तो खुद घोड़े पर विराजमान होते ही हैं।

बड़े-बूढ़ो व बच्चों के सान्निध्य में किया जाने वाला यह पर्व परिवारिक संरचना को भी बल प्रदान करता है। इसमें आर्टिफिशियल चमक की जरूरत नहीं होती है। नदी, तलाव के पानी में जब छठ वर्ती पीले कपड़े में खड़े होते हैं तो उस पल की खूबसूरती ही सबसे अलग होती है। इसमें गरीब और अमीर की खाई भी नहीं होती। सभी एक सामन कपड़े में छठी मैया के आगे हाथ फैलाएं खड़े होते हैं।

अगर इस फलदायी पर्व की इतिहास देखें तो सतयुग में भागवान राम जब लंका से लौटे तो माता सीता के साथ सूर्यदेव की आराधना की। महाभारत में सूर्य पुत्र कर्ण द्वारा सूर्य देव की पूजा का वर्णन है। वह सूर्य की कृपा से इतने प्रभावशाली बने। पुराण में भी छठ पूजा का वर्णन है। राजा प्रियवद को कोई संतान नहीं थी। उन्होंने भी सूर्य की आराधणा की तो पुत्री रत्न की प्राप्ति हुई थी। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी। उस दिन से छह पूजा उसी दिन होती आई है। बिहार, झारखंड, पूर्वी यूपी में हजारों परिवार मिल जाएंगे जिनकी सारी मुराद छठी मैया ने पूरी की। इस महापर्व की महिमा जिनता लिखूंग उतना कम होगा।